महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा मिलकर पिछले 35 सालों से विभिन्न चुनाव लड़ते आ रहे हैं। पिछले चुनावों में भी इन दोनों ने ऐसा ही किया था, लेकिन मुख्यमंत्री के पद के दावेदारी को लेकर शिवसेना और भाजपा में ठन गई। कहना न होगा कि दोनों ही दल हिंदुत्व के पक्षधर रहे और कांग्रेस और एनसीपी के कट्टर विरोधी रहे। लेकिन शिवसेना ने भाजपा का पुराना साथ छोड़ कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के सुपुत्र उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बना कर महाराष्ट्र सरकार की सत्ता पर कब्जा कर लिया!

यह सब भाजपा कैसे सहन कर सकती थी! तभी से केंद्र की भाजपा और महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की सरकार में एक दूसरे को नीचा दिखाने का खेल चलता रहा! उद्धव सरकार के एक महत्त्वपूर्ण मंत्री एकनाथ शिंदे ने, जो 2019 में भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, उद्धव सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया है और एलान किया कि शिवसेना के 55 में से 40 विधायक उसके साथ हैं। ऐसा लगता हैकि शिवसेना तथा भाजपा मिलकर सरकार बनाने की कोशिश करेंगे!

महाराष्ट्र में विधायक एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में सत्ता सुख तथा धन दौलत प्राप्त करने के लिए जो कुछ कर रहे हैं, वह राजनीति में न केवल नैतिकता का अंतिम संस्कार है, बल्कि मतदाताओं को धोखा देने वाली बात भी है! मतदाता विभिन्न उम्मीदवारों को अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार वोट देते हैं और यह जनप्रतिनिधि अपने राजनीतिक सुख के लिए एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी अपना लेते हैं और मतदाता बेचारे ठगे से रह जाते हैं।

ऐसा महाराष्ट्र में पहली बार नहीं हो रहा! इससे पहले भी ऐसे राजनीतिक खेल कई बार खेले जा चुके हैं! जब कभी भी राज्यसभा के लिए विधानसभाओं द्वारा सांसदों का चुनाव होने लगता है क्रास वोटिंग के द्वारा एक दल के विधायक दूसरे दल के प्रत्याशी को वोट देकर अपनी पार्टी के साथ गद्दारी करते हैं। असल में आजकल राजनीति में केवल सत्ता प्राप्त करना ही मुख्य उद्देश्य रह गया है। नैतिकता, नीतियां, उद्देश्य, देशभक्ति, मतदाताओं के प्रति वचनबद्धता, बदनामी का डर आदि कोई मायने नहीं रखते।

असल में होना तो यह चाहिए कि जब कभी भी कोई विधायक या सांसद क्रास वोटिंग करता है या अपने दल को छोड़कर दूसरे दल में प्रवेश करता है तो कानूनी तौर पर उसकी विधानसभा या सांसद के तौर पर सदस्यता समाप्त हो जानी चाहिए। तब ही यह राजनीतिक उठापटक खत्म होगी। पर सवाल यह है कि क्या हमारे नेता ही इस प्रकार का कोई कानून पास होने देंगे? बहरहाल, हम सबकी दिलचस्पी और उत्सुकता यह जानने में होगी कि एकनाथ शिंदे के द्वारा शिवसेना से बगावत करने के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में क्या बदलाव आता है!
शाम लाल कौशल, रोहतक, हरियाणा

तबाही की बरसात

मौसम का बदलना प्रकृति का नियम है। वर्षा ऋतु में किसानों से लेकर प्यासी धरती को भी बारिश का इंतजार रहता है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय और त्रिपुरा में बाढ़ की वजह से हालात बदतर हो चुके है। असम में मानसून के प्रथम चरण में ही दो बार बाढ़ आ चुकी है और वहां अब तक बाढ़ की वजह से चालीस लोगों की मौत हो चुकी है, लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। भूस्खलन और मकान गिरने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है।
हर साल बाढ़ राहत के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन इस आपदा की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। यह आपदा प्रकृति प्रदत कम है और हमारी लापरवाही का नतीजा अधिक है।

प्रतिवर्ष बाढ़ से लाखों लोग बेघर हो जाते है। बढ़ती जरूरतों के चलते अवैध तरीके से कुछ लोग पहाड़ की चोटियों पर घर बना रहे हैं, तो कुछ लोग नदी और नाला किनारे बस रहे हैं। शुरुआती दौर में प्रशासन की अनदेखी और मिलीभगत की वजह से ऐसे घरों की संख्या बढ़ती जाती है। जब तक कोई दसा नहीं होता है, तब तक प्रशासन की नींद नहीं खुलती है। प्राचीन काल में लोग ऊंची जगहों पर घर बनाते थे, लेकिन आज बढ़ती आबादी की वजह से लोगों को जहां भी जगह मिल रही है, लोग वही घर बसा ले रहे हैं। सरकार को बारिश से होने वाली तबाही के स्थायी समाधान का प्रयास करना चाहिए।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया