महिलाएं भारत की जनसंख्या का आधा हिस्सा हैं। समय आ गया है कि हम समीक्षा करें कि उन्होंने सामाजिक और आर्थिक रूप से कितनी प्रगति की है, जिससे उनके सशक्तिकरण का अंदाजा लगाया जा सके। यह दुखद है कि कुछ अपवादों को छोड़ कर पेशेवर और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट में लैंगिक असमानता सूचकांक को देखा जाए तो भारत 159 देशों में 125वें स्थान है। विश्व आर्थिक फोरम के जेंडर गैप इंडेक्स पर भी भारत 144 देशों में 108वें स्थान पर है। पिछले साल के मुकाबले भारत यहां 21 पायदान फिसला है।

लड़कियों के साथ भेदभाव बचपन से ही शुरू हो जाता है। लड़कों की तुलना में लड़कियों को सर्वश्रेष्ठ इलाज नहीं मिलता है और न ही उन्हें खाने में सबसे बेहतर चीजें मिलती हैं। कम आय वाले घरों में लड़कियों कुपोषण के बीच बड़ी होती हैं और जीवन में आगे चलकर एनीमिया यानी रक्ताल्पता का शिकार हो जाती हैं।

भारत में 14 से 49 साल की 51 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया का शिकार हैं, जो दुनिया में अधिकतम है। यह बच्चे को जन्म देने के समय खतरे का सबब बनता है। भारत में जन्म देते हुए माताओं की मृत्यु दर बहुत ज्यादा होने के पीछे यह एक प्रमुख कारण है। भारत में प्रति एक लाख जन्म पर 167 माताओं की जान जाती है। इस श्रेणी में हम संयुक्त राष्ट्र के सहस्त्राब्दि लक्ष्य नहीं प्राप्त कर पाए। बच्चियों के किशोरावस्था में पहुंचते ही उन्हें स्कूल छोड़ देने के हालात में डाल दिया जाता है, इसलिए मिडिल और सेकेंडरी स्कूलों में लड़कियों की बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर लड़कों की तुलना में काफी ज्यादा है। आज पच्चीस साल से ज्यादा से उम्र की महिलाओं का शिक्षा स्तर पुरुषों से कम है और उनमें से केवल 35.3 फीसद ही सेकेंडरी स्तर तक पढ़ी हैं।

भारत के बारे में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था के तौर पर चर्चा की जाती है, पर सच यह भी है कि यह महिलाओं के लिए दुनिया में सबसे असुरक्षित स्थानों में से एक है। हर रोज महिलाओं के खिलाफ हिंसा के समाचार आते हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए पुरुषों के रुख में बदलाव आना जरूरी है, पर महिलाओं की सुरक्षा आखिराकर राज्य की जिम्मेदारी है।

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है। परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के ताजा परिणामों में खुलासा हुआ है कि अपने परिवारों में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की छूट केवल बीस फीसद महिलाओं को है। इकसठ फीसद महिलाओं ने बताया कि महत्त्वपूर्ण निर्णय पति-पत्नी संयुक्त रूप से लेते हैं। केवल सात फीसद ने ही कहा कि सारे फैसले पति लेते हैं। क्या यह हैरानी की बात नहीं है कि आज बयालीस फीसद महिलाएं अपने पतियों के बराबर कमा रही हैं, इक्कीसवीं सदी में महिलाओं का अब जल्दी विवाह भी नहीं होता है, पर अभी भी पतियों का प्रभुत्व कायम है।

महिलाएं परिवारों के पालन-पोषण के लिए काम करना छोड़ देती हैं, पर बाद में उन्हें काम मिलना आसान नहीं होता है। इसीलिए भारत में बहुत-सी शिक्षित महिलाएं काम नहीं कर रही हैं। एक बार छोड़ने के बाद नौकरी पाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण देने की सुविधा भारत में न के बराबर है।
’कल्पना झा, फरीदाबाद, हरियाणा

रेल का खेल
देश के निम्न आय वर्ग और मध्यम आयवर्ग की यात्राओं के लिए सबसे पहली पसंद भारतीय रेल है या यों कह लीजिए की रेल की यात्रा उसकी जेब के अनुकूल होती है तो उसमें सफर करना उसकी मजबूरी है। उपर्युक्त वर्णित वर्ग शौक या घूमने फिरने के लिए ये यात्राएं नहीं करता, बल्कि उसका पेट उससे ये यात्राएं करवाता है। काम-धंधे की तलाश में उसे एक शहर से दूसरे शहर का सफर करना ही पड़ता है। कोरोना काल के बाद रेल मंत्रालय ने ट्रेनों को तो आरंभ कर दिया, पर अनारक्षित टिकट बंद कर दी।

शायद यह समय की मांग थी, पर अभी जो खेल रेल विभाग यात्रियों के साथ खेल रहा है, वह निर्धन यात्रियों की जेब पर बहुत भारी पड़ रहा है। यह अक्सर देखने में आता है कि लंबी दूरी की ट्रेन में आखिरी समय तक आनलाइन ट्रेन बुकिंग में सिर्फ ‘नाट अवेलेबल’ दिखाया जाता है। उदाहरण के लिए किसी ट्रेन को सुबह 6.45 बजे चलना है तो उसकी पहली रात्रि तक ‘नाट अवेलेबल’ दिखाया जाता है और रात्रि 9.00 बजे के बाद अचानक काफी सीट शयनयान में खाली दिखा दी जाती है। अब रेलवे से पूछा जाए कि अभी तक जो ‘नाट अवेलेबल’ था, आचनक इतनी खाली सीट कहां से आ गई?

यह समझना जरूरी है कि तत्काल आरक्षण की आड़ में रेल में क्या खेल चल रहा है! तत्काल आरक्षण में आरक्षित टिकट को रद्द करवाने पर यात्री को कोई धन राशि वापस नहीं मिलती और टीडीआर फाइल करने पर मात्र पचास फीसद ही धन राशि वापस मिलती है। यानी रेलवे के लिए आम के आम गुठलियों के दाम। अत्यंत दुख की बात है कि गरीबों का एकमात्र सफर का साधन भी उनकी पहुंच से दूर होता जा रहा है। सरकार को इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि यह वर्ग भी सम्मान के साथ भारतीय रेल में सफर कर सके।
’योगिता शर्मा, सुधोवाला, देहरादून

साइबर खतरा
भारत के प्रधानमंत्री का निजी ट्विटर खाता कुछ समय के लिए हैक हो गया था। सवाल है कि जब इतने ऊंचे स्तर के व्यक्ति का अकाउंट सुरक्षित नहीं है तो आम नागरिक का क्या होगा? इससे या संकेत मिलता है कि भारत अब भी साइबर हमले को रोकने के लिए अक्षम है, जो भारतवासियों के लिए सुरक्षा के नजर से चिंताजनक है, जहां पूरे विश्व सहित भारत भी डिजिटल युग की ओर बढ़ रहा है। पैसे का लेनदेन से लेकर तमाम चीजों को डिजिटलीकरण किया जा रहा है। ऐसे में देशवासियों को साइबर हमले से सुरक्षित भी करना होगा, जिससे आम जनमानस को किसी प्रकार की दिक्कत न हो। साइबर हमला से बचने के लिए भारत को जरूरी कदम उठाने पड़ेंगे।
’सचिन पांडेय, इलाहाबाद विवि, प्रयागराज