भारतीय संविधान में किसी भी प्रकार की लैंगिक असमानता का निषेध किया गया है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज इक्कीसवीं सदी के भारत में इस तरह के भेदभाव को बढ़ावा दिया जा रहा है। नया मामला केरल के सबरीमाला मंदिर का है जो इस समय चर्चा में है और जहां दस से पचास वर्ष की आयु वाली महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है। अफसोसनाक है कि यह घटना उस केरल की है जो देश की साक्षरता सूची में प्रथम पायदान पर है। यह अकेला मामला नहीं है जहां स्त्रियों के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध है बल्कि ऐसे कई अन्य मंदिर भी हैं।

महाराष्ट्र का शनि शिंगनापुर मंदिर भी हाल ही में चर्चा का विषय बना था। वहां भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इसके साथ ही बुंदेलखंड में झांसी के समीप माता पीतांबरा देवी शक्तिपीठ है जिसमें प्रसिद्ध धूमा देवी का मंदिर है; वहां स्त्रियों का गर्भगृह के दर्शन करना तो दूर, मंदिर के समीप जाना भी वर्जित है। यही कारण है कि वहां मंदिर के काफी दूर से ही बैरिकेटिंग करके स्त्रियों को बाहर ही रोक दिया जाता है। यहां ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’ वाली भारतीय संस्कृति का पालन करने वाले पुरोधाओं से प्रश्न है कि जहां स्त्रियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते हैं तो फिर जहां देवता निवास करते हैं वहां स्त्रियां पूजा क्यों नहीं कर सकतीं?

भारतीय संस्कृति अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के कारण विश्व के लिए हमेशा आकर्षण का विषय रही है लेकिन आज के युग में इस तरह की परंपराओं का पालन करने से विश्व पटल पर हमारी छवि धूमिल होना स्वाभाविक है। परंपराओं का पालन करना तभी तक सही है जब तक वे तर्कसंगत और न्यायसंगत हों। लेकिन जब यही परंपराएं रूढ़िवादिता और अंधविश्वास को बढ़ावा देने लगती हैं तब उनमें परिवर्तन आवश्यक हो जाता है। स्त्रियों के प्रवेश करने मात्र से मंदिर का अपवित्र हो जाना एक ऐसा ही मामला है। आंख बंद करके इस परंपरा का अंधानुकरण किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह ठीक बात है कि सदियों से चली आ रही किसी परंपरा में परिवर्तन करना या उसे तोड़ना बहुत सहज नहीं है। फिर भी पहल तो करनी ही होगी। हमारे यहां धार्मिक स्वतंत्रता के बीच जब आस्था और विश्वास के प्रश्न इस रूप में सामने आते हैं तब समस्या और भी जटिल हो जाती है। चूंकि यह जन की आस्था से जुड़ा हुआ प्रश्न है, इसलिए जरा भी अगर-मगर करने पर हाय तौबा मच जाती है। आज हम जिस समाज में रह रहे हैं, हमें चीजों को और भी ज्यादा वैज्ञानिक रूप में स्वीकार करना चाहिए। (अल्पना सिंह, बीएचयू, लखनऊ)

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नापाक इरादे
पाकिस्तान की आतंकी हरकतों के बारे में सारी दुनिया में आवाजें उठ रही हैं लेकिन उस पर कोई असर होना तो दूर, उलटे उसकी बौखलाहट और बढ़ती ही जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तो यहां तक कह दिया है कि पाक जैसे देश आतंक की पनाहगाह बने हुए हैं। मतलब सीधे-सीधे पाक पर निशाना साधा गया है। लेकिन पाक है कि अपने नापाक इरादों से बाज आने की कोशिश तक नहीं कर रहा है। बल्कि उसके पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ तो आग में घी डालने वाले बयान देने से नहीं चूक रहे हैं। समय आ गया है कि पाक को समझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सख्ती से पेश आए। तभी पाक के साथ ही उसके जैसे अन्य देशों से दुनिया में बढ़ती आतंकी गतिविधियों पर काबू पाया जा सकता है। (महेश नेनावा, गिरधर नगर, इंदौर)

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सबसिडी के पात्र
सबसिडी का मकसद गरीब कमजोर वर्ग के लोगों की मदद करना है इसलिए अपेक्षित है कि संपन्न लोग एलपीजी सबसिडी पर सरकार के फैसले को सहर्ष स्वीकार करेंगे। मोदी सरकार ने साहसिक कदम उठाया है। यह उन आर्थिक सुधारों की दिशा में है जिनके लिए वह बड़ा जनादेश लेकर सत्ता में आई है। सबसिडी को तर्कसंगत बनाना आर्थिक सुधारों का प्रमुख हिस्सा है। इसी पर अमल करते हुए केंद्र सरकार ने फैसला किया कि नए साल की शुरुआत के साथ उन लोगों को रसोई गैस सबसिडी नहीं मिलेगी जिनकी आमदानी दस लाख रुपए या उससे ज्यादा है।

फिलहाल सरकार ने इस मामले में लोगों की स्व-घोषणा पर यकीन करने का फैसला किया है। यानी रसोई गैस सिलेंडर पर सबसिडी लेने के लिए उपभोक्ता को बताना होगा कि उसके परिवार की सालाना करयोग्य आमदनी दस लाख रुपए से कम है। यदि पति-पत्नी की साझा करयोग्य आमदनी दस लाख रुपए या उससे ज्यादा हुई तो गैस सबसिडी नहीं मिलेगी। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि सालाना दस लाख रुपए आमदनी होने का मतलब भारत में उच्च-मध्य वर्ग का हिस्सा नहीं होता है। सबसिडी का मकसद गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों की सहायता करना है।

लिहाजा, अपेक्षित है कि संपन्न लोग सरकार के इस फैसले को स्वीकार करेंगे। अब तक कुल 57 लाख लोग ऐसी उदारता दिखा चुके हैं तो आशा की जानी चाहिए कि दस लाख से अधिक वार्षिक आय वाले तमाम लोग अपनी ईमानदारी का परिचय देंगे। (शुभम सोनी, इछावर, मध्यप्रदेश)

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शक्ति का सदुपयोग
आज विश्व की सबसे अधिक युवा श्रम शक्ति हमारे पास है फिर भी इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। दुनिया के सबसे बड़े विकासशील देश में इतनी अधिक संख्या में युवाओं का होना खुशी की बात है। अगर कोई कारगर समग्र योजना या नीति बना कर युवाओं की शक्ति को सही दिशा में लगाया जाए तो एक मजबूत राष्ट्र बनने का हमारा सपना जल्दी ही पूरा हो सकता है। आज युवाओं के समक्ष सबसे जटिल समस्या योग्यता के अनुरूप नौकरी नहीं मिलना है। बेरोजगारी के कारण उनमें सकारात्मक की बजाय नकारात्मक सोच पैदा हो रही है।

युवा पीढ़ी अपनी शक्ति का ह्रास कर रही है। गरीबी और बेरोजगारी के कारण कुछ युवा गलत रास्ता अपना रहे हैं। देश में आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले अधिकतर 25 से 35 वर्ष उम्र के होते हैं। विभिन्न राज्यों की पुलिस की नाक में दम करने वाले और देश की आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े दुश्मन नक्सली, युवाओं को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। युवाओं को अगर राष्ट्र निर्माण से जोड़ा जाए तो कुछ ही वर्षों में देश की तस्वीर बदल सकती है। सरकार को युवाओं की शक्ति का सदुपयोग करने के लिए ठोस नीति बनाने की आवश्यकता है। (प्रताप तिवारी, सारठ, झारखंड)