पटियाला हाउस कोर्ट परिसर में वकीलों ने कवरेज के लिए गए पत्रकारों के साथ मारपीट की मामला जेएनयू में हुए देश विरोधी कार्यक्रम और देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार की पेशी के दौरान हुआ, जब कुछ वकीलों और भाजपा नेताओं ने विद्यार्थियों पर ‘देशद्रोह’ का आरोप लगाते हुए हमला बोल दिया। हमलावरों ने पत्रकारों को भी देशद्रोही बता कर मारपीट की।
हमला करने वाले कोई अनपढ़ लोग नहीं थे, वकीलों ने इस घटना को अंजाम दिया है, जो सबसे बड़ी चिंता का विषय है। वकील कोर्ट के दरवाजे पर ही खुद जज बन कर सजा देने लग जाएंगे तो देश में न्याय का हश्र क्या होगा? हमारे देश में आतंकवादियों का मामला भी देश के ही वकील लड़ते हैं। तब भी दोनों पक्षों की बात ध्यानपूर्वक सुनी जाती है। कोर्ट के लिए तो आरोपी भी तब तक बराबर है, जब तक उस पर अपराध सिद्ध नहीं हो जाता।
लेकिन अदालत परिसर में ऐसी घटनाओं को अंजाम देना न्यायपालिका पर आम जन की विश्वसनीयता पर भी एक सवाल बन गया है। जब दूसरे पक्ष के विद्यार्थियों सहित पत्रकारों पर भी हमले होते हैं तो कोई आम आदमी कैसे अपने सुरक्षा की आस लगा सकता है! न्यायपालिका को मामला अपने संज्ञान में लेकर सख्त कदम उठाने चाहिए। मामला अदालत परिसर में हुआ है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि दोषियों को कड़ी सजा देकर आम जन को आश्वस्त किया जाए कि वे कोर्ट से सुरक्षित न्याय की गुहार लगा सकते हैं।
असल में यह हमला देश के लोकतंत्र पर हमला है, जहां इसके चौथे स्तंभ के भिन्न विचारों पर सरकार हमला करेगी तो पहले से ही हताहत स्तंभ के गिरने में वक्त नहीं लगेगा। देशभक्त होने का मतलब हर स्थिति में सरकार समर्थक होना नहीं रहा। हमेशा मीडिया आलोचनात्मक रवैया अपनाती ही है। आपातकाल के दौरान भी मीडिया ने खतरे उठा कर सरकार के विरोध में लिखा है। लेकिन जो कुछ पत्रकार मुखर होकर लिख-बोल पा रहे हैं, अगर उन पर भी हमला कर उन्हें देशद्रोही घोषित कर दिया जाएगा तो फिर सब ऐसे पत्रकार बचेंगे जो केवल सरकार के ‘भक्त’ होंगे।
’विनय कुमार, आइआइएमसी, नई दिल्ली