आपदा में अवसर की बात प्रधानमंत्री ने कही थी। आपदा ने भी सरकार को समय दिया था कि ऐसी परिस्थिति से निपटने की व्यवस्था कर ले। मगर क्या ऐसा हुआ? आज देश की राजधानी दिल्ली में लोगों को आॅक्सीजन, इंजेक्शन, दवाओं की मूलभूत सुविधाओं की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। लोग आॅक्सीजन की कमी के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
बदहवास की हालत में अपनों को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं। इसी तरह से दूसरे राज्यों की राजधानियों से भी ऐसी खबरें आ रही हैं। छोटे शहरों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। महाराष्ट्र की स्थिति तो और गंभीर है। वहां के अस्पतालों में सुविधाओं का ज्यादा अभाव है। सोशल मीडिया पर भी एक वीडियो आया जिसमें आसनसोल की एक रैली में अपार जनसैलाब देख कर देश के एक शीर्ष नेता कहते हैं कि जहां भी देखो लोग ही लोग दिखाई देते हैं। जहां देशभर में सांसों को बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही है, वहीं चुनावी रैलियां चरम सीमा पर है। अब तो एक मजाक बन गया है कि कोरोना से बचना है तो चुनावी रैलियों में जाना चाहिए।
यह एक बड़ी विडंबना है कि आज भी हमारी मानसिकता धर्म, जात-पात, मंदिर, मस्जिद की ही राजनीति में उलझी हुई है और राजनीतिक दल भी ऐसी ही विचारधारा को अपने घोषणा-पत्रों में जगह देते हैं। कोरोना जैसी आपदा ने एक साल का समय दिया, मगर इसमें स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं का जाल खड़ा करने से सरकारें वंचित रह गईं। इस समय को व्यर्थ की राजनीति करने में गुजार दिया गया। फिर से महामारी ने अपना प्रचंड रूप दिखा दिया, जिसकी वजह से आज जनता को अस्पताल, श्मशान, कब्रिस्तान के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। बड़ा ही कष्टदाई है कि अपनों को अपने ही सामने दम तोड़ते हुए देख रहे हैं। उसके बाद दाह-संस्कार के लिए भी कतार में खड़ा होना। यह देश की व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा करता है।
अब हमें अपने आप से यह प्रण करना होगा कि अस्पताल, स्कूल, या जीवन जीने के मूलभूत सुविधाओं के ही आधार पर ही हम अपने देश की बागडोर किसी के हाथ सौंपेंगे। अन्यथा ऐसे ही समय आने पर हमारे अपने हमारी बाहों में दम तोड़ते रहेंगे। इसके जिम्मेदार हम खुद होंगे। ऐसे विकास से क्या फायदा, जिससे जनता की सांस को बचाया न जा सके? आज हजारों करोड़ के खर्च से बनाई जा रही इमारतें और मूर्तियों से आम जनता को क्या फायदा है। आज मूर्ति की जगह पर पटेल अस्पताल का निर्माण हुआ होता तो शायद वहां से कितने जीवन बच गए होते और यही पटेल के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होती। इसी तरह मंदिर, मस्जिद के निर्माण में हजारों करोड़ खर्च करने की बजाय ऐसे सामूहिक फायदे के कार्यों में लगाए जाते तो देश और धर्म के हित में भी अच्छा होता। जीवन को बचाने के लिए हर धर्म में वरीयता दी गई है।
’मोहम्मद आसिफ, जामिया नगर, दिल्ली</p>
विकास में गांव
उत्तर प्रदेश मे पंचायत चुनाव प्रचार और मतदान का काम चल रहा है। आजादी के बाद देश मे गांव से लेकर शहर तक जिस लोक की कल्पना की गई थी, उसमे पंचायत चुनाव का योगदान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। महात्मा गांधी की तरह ही जयप्रकाश नारायण भी यह मानते थे कि समाज निर्माण के कामों की शुरुआत गांव से होनी चाहिए, जहां अधिकतर जनता रहती है। गांव में लोग एक दूसरे से कई तरह से जुड़े होते हैं और उन सबके बीच एक आत्मीय संबंध होते हैं। इसके अतिरिक्त वे प्रकृति के ज्यादा नजदीक होते हैं।
जेपी का मानना था कि गांव ही आर्थिक विकास, योजना और स्वराज की मौलिक इकाई होना चाहिए। गांव की सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था होगी ग्राम सभा। सभी वयस्क ग्रामीण इसके सदस्य होंगे। इसकी पंचायत का गठन आम सहमति से होना चाहिए। जैसे एक संयुक्त परिवार में सदस्यों के बीच मतभेद तो होते हैं, लेकिन इससे अलग-अलग गुट नहीं बन जाते। ग्राम सभा और पंचायत को पूरा अधिकार प्राप्त होना चाहिए, ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके कि हर व्यक्ति कि आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है। मसलन, यह देखना उसकी जिम्मेदारी होगी कि गांव का कोई व्यक्ति बिना भोजन, वस्त्र और आवास के नहीं रहे, हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा मिले, हर व्यक्ति को आवश्यक स्वास्थ्य सुविधा प्राप्त हो सके आदि।
इसके बाद क्षेत्रीय स्तर पर ग्राम पंचायतों को मिला कर पंचायत समिति बनाई जानी चाहिए। लेकिन स्वराज प्राप्ति के बाद जैसे अन्य बहुत से क्षेत्रों मे गिरावट देखी गई है, कुछ वैसा ही रूप पंचायत चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। बहुत कम ग्राम सभाएं हैं, जहां आम सहमति से ग्राम प्रधानों का चुनाव देखने को मिलता है। भौतिकता और स्वार्थ का बोलबाला है। देखना होगा हम गांधी, लोहिया और जयप्रकाश के सपनों का गांव कब विकसित करेंगे।
’राजेंद्र प्रसाद बारी, लखनऊ, उप्र
जोखिम कायम
कोरोना के रूप बदलने से दुनिया भर में खलबली मची हुई है। वुहान से चला कोरोना दूसरे दौर में कई रूप बदल चुका है। इस समय की लहर अधिक घातक सिद्ध हो रही है। ‘यूके स्ट्रेन’ से भारतीयों को भयभीत कर चुका कोरोना अब ‘इंडियन वेरिएंट’ से ब्रिटेन में दहशत फैला रहा है। इससे ब्रिटेन में तीसरी लहर की आशंका नजर आने लगी है। कुछ संक्रमण थमने के बाद ‘यूके स्ट्रेन-टू’ आया, जो महाराष्ट्र के रास्ते भारत में घुसा और उसके कई रूप नजर आए। फैलते संक्रमण और मौतों में अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस, नार्वे सहित कई देश पीड़ित रहे, जहां बड़ी तबाही मची।
अब ब्रिटेन में संक्रमण की रफ्तार घटने के बाद एक बार फिर वहां संक्रमण पांव पसारता नजर आ रहा है, जबकि वहां पूर्णबंदी को खत्म करने की तैयारी चल रही है। ‘इंडियन वेरिएंट’ को लेकर इन दिनों लंदन में चिंता हो रही है, जहां ‘डबल म्यूटेशन’ वाले वायरस से संक्रमण के सतहत्तर नए मामले सामने आए हैं। इस वजह से वहां के वैज्ञानिक भी चिंतित है। उन्हें आशंका है कि देश में तीसरी लहर आ सकती है जो अब तक की सबसे अधिक खतरनाक हो सकती है। ऐसे में अतिरिक्त सावधानी के साथ ब्रिटेन में सुरक्षा बढ़ाई जा रही है। ताजा हालात को देखते हुए सावधानी की जरूरत है।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र