सन 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी ओर से कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व, यानी प्रधानमंत्री पद राहुल गांधी को देने की पेशकश की थी। वह युवराज के लिए सत्ता संभाल लेने का सबसे अच्छा मौका था। लेकिन खुद को कम अनुभवी, कम परिपक्व समझते हुए राहुल ने संकोच दर्शाया। सात साल बाद आज भी नहीं लगता कि राहुल किसी परिपक्व राजनेता के रूप में विकसित हो पाए हैं। जनसामान्य की इस धारणा को कांग्रेसी नेता भी भांप रहे हैं। यही नहीं, एक सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि नरेंद्र मोदी के रूप में एक बहुत बड़ी लकीर सामने खिंची हुई है जो 2009 में राष्ट्रीय परिदृश्य पर नहीं थी। साफ है कि राहुल की गाड़ी छूट चुकी। अब राजनीतिक बियाबान ही लंबे समय तक उनकी रिहाइश रहने की संभावना है। अगली गाड़ी कब मिले, आए भी कि न आए, कहा नहीं जा सकता।
(अजय मित्तल, खंदक, मेरठ)
चौपाल : गाड़ी तो गई
सन 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी ओर से कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व, यानी प्रधानमंत्री पद राहुल गांधी को देने की पेशकश की थी।
Written by जनसत्ता
नई दिल्ली

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First published on: 02-06-2016 at 00:35 IST