जहां एक ओर सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हम दिन प्रतिदिन आगे बढ़ते जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ हमारे शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला ई-कचरा भी देश में बढ़ता जा रहा है। एसोचैम की रिपोर्ट में ई-कचरे का देश में वार्षिक उत्पादन 18.5 लाख टन पाया गया। यह मुंबई में सबसे ज्यादा 1.20 लाख टन है।
देश की राजधानी और दिलवालों का शहर कही जाने वाली दिल्ली में अब तो सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। यहां ई-कचरे का वार्षिक उत्पादन 98 हजार टन है। यहां की आबोहवा में श्वास का जहर यानी पार्टिकुलेट मैटर 2.5 पीपीएम है जो दिल्ली वालों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। ई-कचरे में फाइबर ग्लास, पीवीसी, सिलिकान, कार्बन, लौह, आर्सेनिक, मॉनिटर, फ्लोरेसेंट ट्यूब आदि आते हैं। इस कचरे से स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ता है। इसके घातक प्रभावों में मांसपेशियों की कमजोरी, शरीर का अल्पविकास, गुर्दे को नुकसान, हृदय रोग आदि बीमारियां शामिल हैें। आखिर इस कचरे के सुरक्षित निपटान की बाबत हम कब गंभीर होंगे?
संजय दूबे, सुलतानपुर
ब्रेड से कैंसर
जिस ब्रेड को हम बचपन से बड़े चाव से खाते आ रहे हैं, अब पता चला कि इसे खाने से कैंसर होता है। अगर खबर सही है तो पता लगाया जाना चाहिए कि अब तक कितने लोगों को ब्रेड खाने से कैंसर हुआ है। अगर लोगों को कैंसर हुआ है तो इसका जिम्मेवार कौन है? भारत में ब्रेड बनाने में जिस रसायन (पोटैशियम ब्रोमेट) का इस्तेमाल होता है वह दुनिया के कई मुल्कों में पहले से ही प्रतिबंधित है। तो फिर भारतीय खाद्य एवं मानक प्राधिकरण आखिर किस रिपोर्ट का इंतजार कर रहा था? आखिर सरकार और उसकी तमाम एजेंसियां इतने सालों से कहां सोई हुई थीं?
इससे भारतीय खाद्य एवं मानक प्राधिकरण के रवैये पर सवाल उठता है कि उसने यह कदम पहले क्यों नहीं उठाया जबकि वैज्ञानिकों की एक समिति ने अपनी सिफारिश में इस बात की पुष्टि कर दी थी कि ब्रेड में पोटैशियम ब्रोमैट का इस्तेमाल हो रहा है जो कि स्वास्थ के लिए हानिकारक है। सरकारी एजेंसियां हमारे स्वास्थ्य को लेकर जागरूक क्यों नहीं हैं?
मो तौहिद आलम, रामगढ़वा, बिहार</strong>