चाहे कोई कितना ही सावधान रहे या सत्ता के घमंड में न आने की बातें करे, सत्ता की घेरेबंदी और उसका लाभ उठाने वालों की चापलूस प्रवृत्ति चाहे-अनचाहे अहंकार पैदा करती है। कांग्रेस के जिस अहंकार के नगाड़े बजा कर नरेंद्र मोदी ने उसे लोकसभा चुनाव में धराशायी किया, उसी अंदाज को आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में मोदी के खिलाफ आजमाया। दिल्ली की सत्ता में आए महीना भर भी नहीं हुआ कि यह अहंकार, जिसके बाबत खुद केजरीवाल ने विजय रैली को संबोधित करते हुए सचेत किया था, आम आदमी पार्टी के बीच द्वंद्व का रूप लिए सामने आ गया है।
केजरीवाल ने इससे दुखी होने का ‘ट्वीट’ तो किया, पर जहां से दिक्कत हुई, वहां संवाद करते नजर नहीं आए, बल्कि खराब स्वास्थ्य के बहाने किनारे खड़े होकर तमाशे का हिस्सा बने रहे। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी को अन्य राजनीतिक पार्टियों से अलग तरह की बताने वाले योगेंद्र यादव एक बच्ची के हाथों जमा ‘गुल्लक ’ की सारी राशि दान करने का प्रसंग बताते हुए उससे जुड़ी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते-करते पार्टी के टूटने की आशंका से रुआंसे नजर आए। रवीश कुमार के साथ साक्षात्कार में यह बात साफ-साफ उभर कर आई कि प्रशांत भूषण, केजरीवाल और योगेंद्र यादव के बीच का संवाद टूट-सा गया है। सत्ता के स्वार्थ की घिर्री इसे और गहरा ही करेगी। आशुतोष, आशीष खेतान, दिलीप पांडे जैसों के वक्तव्य इसी दिशा की ओर ले गए हैं।
भाजपा भी खुद को अलग तरह की पार्टी बताती रही है और देश को कांग्रेस मुक्त करने का दावा कर अपनी उज्ज्वलता का बखान करती रही है। लेकिन वह कितनी उज्ज्वल और अलग है, यह देश ने देख लिया है। महज सत्ता के लिए कांग्रेस के साथ रहे नेता और तमाम दागी आज भाजपा में हैं। सत्ता के लिए जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठजोड़ और उसके बाद आए मुख्यमंत्री मुफ्ती और उसके विधायकों के आपत्तिजनक बयानों ने भाजपा के राष्ट्रवादी मुखौटे को नोंच कर उतार दिया है।
मुफ्ती के हुर्रियत, अलगाववादियों और पाक की मेहर से जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव होने संबंधी बयान और इसके दूसरे दिन पीडीपी विधायकों के संसद पर हमला करने के जुर्म में फांसी की सजा पाए अफजल गुरु के अवशेषों की मांग करने पर भी भाजपा बगलें झांकती नजर आई। भाजपा के राष्ट्रवाद का मुखौटा पहली बार उतर कर सामने आया हो, ऐसा नहीं है। इससे पहले भी जब इन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सत्ता मिली थी, तब पूरे देश ने देखा था कि कथित राष्ट्रवादी पार्टी के विदेश मंत्री आतंकवादियों को विमान से कंधार छोड़कर आए थे। जिस अफजल गुरु के अवशेष पीडीपी के विधायक मांग रहे हैं, उसके नेतृत्व में संसद पर हमला भी तो इन्हीं के शासन काल में हुआ था। कुछ दिन पहले समुद्र के रास्ते गुजरात में प्रवेश करती जिस नौका में आतंकवादी होने की बात कही थी, उस पर नौसेना और रक्षामंत्री के विरोधाभाषी बयानों से सरकार की खासी किरकिरी हो चुकी है।
लोकतंत्र के धमकियों से नहीं चलने की बात कहते हुए प्रधानमंत्री मोदी जनता के जायज विरोध को धमकी ठहराने और उसे ऐसा करने पर कोसने के जिस अंदाज में बोल रहे हैं, वह सत्ता के अहंकार का खुल्लमखुल्ला प्रदर्शन नहीं तो क्या है! लोकतंत्र में विरोध को नजरअंदाज कर बहुमत होने की बार-बार हुंकार भरना और पिछली सरकारों के गलत कार्यों के बहाने अपने गलत कदमों को सही ठहराना, आखिर क्या दर्शाता है? कांग्रेस के समय प्रस्तुत विधेयकों पर भाजपा ने साथ दिया तो अब भी भाजपा के विधेयकों पर कांग्रेस साथ दे, सरीखे थोथे और हास्यास्पद तर्क मोदी दे रहे हैं। प्रधानमंत्री के गिनाए उदाहरणों से यह साबित हो गया है कि भाजपा और कांग्रेस एक ही राह के राही हैं, पक्ष और विपक्ष की बदली भूमिकाओं के तौर-तरीके सिर्फ दिखावटी हैं। कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षी और भाजपा के राष्ट्रवादी ढोल में पोल ही पोल है। अब तो नई राजनीतिक उम्मीद, जिसे वाम का विकल्प तक करार दिया जाने लगा था, के अलग होने का अहसास भी चुकता नजर आने लगा है।
रामचंद्र शर्मा, तरुछाया नगर, जयपुर
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