लंबी शासन अवधि के बाद अगर कोई सत्ता परिवर्तन होता है तो आम जनता को उम्मीद होती है कि वह शासन की प्रकृति में कुछ बदलाव देखेगी और वह उसके हक में होगा। लेकिन करीब दस महीने पूरा करने की ओर बढ़ती भाजपा सरकार ने इस अवधि में जो किया है, उसे किस रूप दर्ज किया जाना चाहिए! प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जितने भी सरकारी फैसले लिए गए और भाजपा के सहयोगी समूहों ने जनता के बीच गतिविधियां और बयानबाजियां कीं, उसका हासिल क्या हुआ है? सनद रखने के लिए पिछले नौ महीनों के दौरान किए गए कामों को याद रखने की जरूरत है, ताकि इसके भविष्य के रुख का आकलन करने में सुविधा हो।

लालकिले से प्रधानमंत्री ने दस सालों तक सांप्रदायिकता पर लगाम लगाने की गुजारिश की थी। लेकिन वे कौन लोग हैं जिन्होंने ‘घर वापसी’ का द्वेषपूर्ण अभियान चलाया और इसके नाम पर जबरन लोगों को हिंदू बनाने की कोशिश की? आगरा में तो करीब ढाई सौ मुसलमानों को लोभ और पैसे देकर इसके लिए तैयार किया गया था। हालांकि इसका खुलासा हो गया। झूठ पर आधारित ‘लव जिहाद’ का नारा देकर समाज में सांप्रदायिक नफरत फैलाने का काम किनका है और वे भाजपा से किस तरह जुड़ते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में खुले तौर पर कहा गया कि अगर मुसलमानों को आरक्षण चाहिए तो वे पाकिस्तान चले जाएं! आरएसएस के प्रमुख और अनेक भाजपा नेताओं ने सार्वजनिक मंचो से कई बार यह कहा भारत हिंदू राष्ट्र है! एक मंत्री ने जवाहरलाल नेहरू के बारे में अवांछित बातें कहीं तो एक सांसद ने गांधी के हत्यारे गोडसे को देशभक्त का तमगा दिया। ऐसी बातें कहने का मकसद क्या है?

देश के विभिन्न हिस्सों के गिरजाघरों में आगजनी और हमले भी क्या हमें भाजपा के ‘विकास-पथ’ से जोड़ रहे है? फिर हिंदू समाज के भीतर ही भाजपा के नेता, परिवार की जिम्मेदारी से भागे हुए कोई बाबा या साध्वी हिंदुओं को चार या दस बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं। सवाल है कि ये आम लोगों का भला चाहते हैं या उन्हें और बड़ी समस्याओं में झोंक देना चाहते हैं। सरकारी स्कूलों की पढ़ाई में सुधार करने के बजाय गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने और उन्हें स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की कवायदें चल रही हैं। इसके क्या नतीजे सामने आएंगे?

सरकार के स्तर पर रेलवे में सुधार के नाम पर भाड़े में बेतहशा वृद्धि करना और आवश्यक जीवनरक्षक दवाओं की कीमतों में भारी बढ़ोतरी करना, भूमि अधिग्रहण बिल में ऐसे संशोधन करना जिससे पूंजीपतियों और कॉरपोरेटों के लिए सुविधाएं और रास्तें आसान हो जाएं और किसानों-मजदूरों को मरने के लिए छोड़ देना किस विकास तक पहुंचने का रास्ता है? क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का निजीकरण की ओर कदम, बीमा और अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेशी के लिए दरवाजे खोल देना, श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव जैसी कवायदें भाजपाई विकास के यथार्थ हैं। नए बजट में तमाम कल्याणकारी योजनाओं, मसलन अनुसूचित जाति-जनजाति के मद में जारी राशि, मनरेगा के लिए आबंटन में भारी कटौती और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के प्रावधान करने को विकास के किस चश्मे से देखा जाए!

आज भाजपा और शायद सरकार ने भी हिंदुत्ववादी ताकतों को खुला छोड़ दिया है, जिसके चलते भारत की धर्मनिरपेक्षता और जनतांत्रिक मूल्यों को चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि भारत की संप्रभुता के प्रतीक गणतंत्र दिवस पर एक ऐसे देश के मुखिया को बुलाया गया जो खुद दुनिया के अनेक देशों की स्वतंत्रता और संप्रभुता को नष्ट करने का काम कर चुका है। क्या ये भारत में अमेरिकी नीतियों की ओर बढ़ते कदम हैं?
मुकेश कुमार, महावीर एन्कलेव, दिल्ली

 

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