प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘स्मार्ट सिटी’ के बारे में काफी गंभीर दिखाई देते हैं। अपने भाषणों में मोदी ने देशवासियों को सौ ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने का सपना दिखाया था। अब अमेरिका के सहयोग से तीन ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने की योजना है। लेकिन भारतीय शहरों को ‘स्मार्ट सिटी’ बना पाना आसान काम नहीं हो सकता। सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हमारे ज्यादातर पुराने शहर अनियोजित हैं, उनका सही नक्शा उपलब्ध नहीं है। इन शहरों की बड़ी आबादी अनियोजित इलाकों में रहती है। इन इलाकों में लगातार आवाजाही होती रहती है। ऐसे में आप काम की शुरुआत कैसे कर पाएंगे? इससे आसान होगा कि नए शहर ही बसाए जाएं, जहां हर चीज की रूपरेखा पहले से की गई हो।
अंतरराष्ट्रीय छवि बनाने के उद्देश्य से मोदी सरकार इन परियोजनाओं पर काम कर रही है, लेकिन क्या उन्हें यह नहीं लगता कि काम करने वाले शहर बनाएं, जहां काफी कुछ हो सकता हो, इसके बजाय की उसे सिर्फ स्मार्ट साबित करने पर चिंता की जाए। स्मार्ट सिटी इक्कीसवीं सदी का शब्द है, जिसे किसी स्मार्ट फोन या स्मार्ट हाउस की तर्ज पर सोचा गया है। लेकिन किसी शहर को स्मार्ट कहना कुछ अजीब-सा लगता है। क्योंकि हर शहर की अपनी संस्कृति होती है। हर शहर अपने आप में काफी जटिल होता है, इसलिए उसके लिए ‘स्मार्ट सिटी’ शब्द का प्रयोग सही नहीं लगता।
स्मार्ट सिटी के सवाल पर सरकार से लेकर इन योजनाओं पर काम करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों और आम लोग इसके बारे में अलग-अलग सोच रखते हैं। ऐसा होना लाजमी भी है, क्योंकि ‘स्मार्टनेस’ की परिभाषा सभी के लिए अलग होती है। अब अगर हम किसी पश्चिमी देश की नकल करना चाहते हैं तो वह असल में गतिशील और अनुशासित एक ऐसा शहर हो, जो काम करता हो, जहां लोग साइकिल चला पाते हों, सड़कों पर पैदल चलने की जगह हो, पार्क हो, हरियाली हो और यातायात सुलझा हुआ हो। सड़कें और इमारतें योजनाबद्ध तरीके से बनी हों, शहरी और सार्वजनिक यातायात सुलभ हो। हर जगह कूड़ा फैला हुआ न हो, शहर के भीतर नालों से बदबू न उठ रही हो। बिजली, पानी, इंटरनेट जैसे आम सुविधाओं की अबाध्य आपूर्ति हो।
शहरों को सुंदर बनाना ही चाहिए। साफ-सुथरे, सारी सुविधाओं से पूर्ण, पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त शहर बनने ही चाहिए। इसमें किसी को क्या एतराज हो सकता है। लेकिन इसी का अगर आप दूसरा पहलू देखें तो, हमारे देश के करोड़ों घरों में पक्के शौचालय तक नहीं हैं। गांवों में ऐसे घरों की संख्या ज्यादा है। शहरों का विकास तो अच्छी बात है, लेकिन गांवों की ओर भी उतना ही ध्यान देने की जरूरत है और उन्हें भी साफ-सुथरा बनाना चाहिए। शहर जो अपनी मूलभूत सुविधाओं का भरपूर इस्तेमाल करना जानता हो, उसी के जरिए अपने नागरिकों को तमाम तरह की सुविधाएं देना जानता हो, उनकी सुविधाओं और उनके लिए अवसर मुहैया कराने के लिए केंद्रित हो, वह स्मार्ट सिटी है। लेकिन नागरिकों को इन शहरों के लायक कैसे बना पाएंगे? वे तो अपने ही ढंग से चलेंगे, नए और स्मार्ट नागरिक कहां से आएंगे? किसी भी स्मार्ट सिटी में सूचना तकनीक का बखूबी इस्तेमाल किया जाता है। स्मार्ट सिटी को बनाते वक्त इसे इको-फ्रेंडली भी बनाया जाना चाहिए।
स्मार्ट सिटी में ऊर्जा बचाने के लिए भी पूरे इंतजाम किए जाते हैं। भारत में स्मार्ट सिटी बनाने को अमेरिका से लेकर और देशों ने मोदी सरकार के सामने इच्छा जाहिर की है। असल में एक बड़ी लागत लगा कर स्मार्ट शहर बना लेना आसान है, बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसके लिए तैयार हैं। उन्हें तो लाभ कमाना है। वहीं चहेते देसी ठेकेदारों के भी वारे-न्यारे हो जाएंगे।
सपना देखना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन उसको अमली जामा पहनाना असल बात है। देखते हैं प्रधानमंत्री मोदी किस तरह अपने इस ख्वाब की ताबीर पूरी कर पाते हैं।
शैलेंद्र चौहान, प्रताप नगर, जयपुर
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