इन दिनों खेती में रासायनिक उर्वरकों और जीन संशोधित बीजों का उपयोग चरम पर है, जो भूमि और जल को लगातार प्रदूषित करता जा रहा है। इसके अलावा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से तैयार खाद्य सामग्री लोगों की सेहत के लिए गंभीर संकट भी उत्पन्न कर रही है। इससे निजात पाने के लिए पूरा विश्व जैविक कृषि उत्पादों की ओर देख रहा है। समूची दुनिया में जैविक उत्पादों का बड़ा बाजार तैयार हो रहा है, जो किसानों के लिए बेहतर आय के अवसर तैयार कर रहा है। इस अवसर का लाभ उठाकर किसान अपनी समृद्धि के साथ लोगों के सेहत और पर्यावरण की रक्षा भी सुनिश्चित कर सकते हैं।

हिमालय की गोद में स्थित सिक्किम देश का पहला राज्य है जो पूर्ण जैविक राज्य घोषित हो चुका है। दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और केरल जैसे पहाड़ी राज्य भी इस लक्ष्य को पाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। समय की मांग को समझते हुए सरकार और समाज दोनों को जैविक खेती की दिशा में सार्थक प्रयास करने होंगे। इन्हीं प्रयासों की बदौलत ग्रामीण विकास के साथ गांधीजी के सपनों का भारत बनाने में भी कामयाबी मिलेगी। जैविक खेती से एक तरफ कृषि लागत में कमी आएगी तो दूसरी तरफ जैविक उत्पाद का बाजार मूल्य भी अधिक होने से किसानों को दोगुना लाभ अर्जित हो सकेगा। इस पहल को साकार करने से गांव का अपशिष्ट भी बेहतर तरीके से कृषि के प्रयोग में लाया जा सकेगा। यह पहल ग्रामीण स्वच्छता की दिशा में एक दूरगामी परिणाम दे पाएगी। इस प्रयास से किसानों की निर्भरता बाजार के रासायनिक उर्वरकोंपर कम होगी और इससे स्वनिर्मित उर्वरकों की मांग भी तेजी से बढ़ेगी।

जैविक खेती का पैदावार बढ़ने से आम उपभोक्ता की सेहतमंद खाद्य सामग्री तक पहुंच सहज हो पाएगी, जो रोगमुक्त समाज बनाने में सहायक होगी। यह सारी स्थिति किसान के साथ आम नागरिकों के लिए भी लाभकारी है। जैविक खेती का सकारात्मक प्रभाव पर्यावरण को भी मिलने वाला है, जो संपूर्ण जैविक तंत्र की रक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है। जैविक खेती की अवधारणा को साकार करने के लिए सरकार को सकारात्मक वातावरण तैयार करने की जरूरत है, जिसमें जैविक खेती का विकास बिना किसी अवरोध के तेज गति से संभव हो सके। सरकार को चाहिए कि इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक प्रचार-प्रसार के माध्यम से जैविक खेती के प्रति जागरूकता फैलाने के अलावा इस क्षेत्र में तर्कसंगत बजट का आवंटन करे ताकि लोग इस नई पहल को आसानी से आत्मसात कर सकें।
सुमित कुमार, गोविंद फंदह, रीगा, सीतामढ़ी

दुर्घटना की सड़क: हमारे देश में सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। इससे देश में होने वाले असामयिक मौतों के आंकड़े में बढ़ोतरी हुई है। पिछले वर्ष करीब सवा लाख लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में हो चुकी है। आंकड़ों के अनुसार सर्वाधिक मौतें (20142) उत्तर प्रदेश में और उसके बाद तमिलनाडु (16157) में हुर्ईं। 7289 लोगों की मौत के साथ गुजरात तीसरे स्थान पर है। इन दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण सड़कों पर मौजूद गड्ढे भी हैं। पिछले पांच वर्षों में सड़कों पर बने गड्ढों की वजह से 14926 लोगों की मौत हो चुकी है। आखिर कब तक देश की सड़कें लोगों को मौत की मंजिल तक पहुंचाती रहेंगी?
सुकुमार शेखर, देवघर, झारखंड</strong>

आत्ममंथन की जरूरत: पांच राज्यों के हालिया विधानसभा चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी और भाजपा के लिए आत्म चिंतन का संदेश लेकर आए हैं। हालांकि मिजोरम और तेलंगाना में कांग्रेस हारी लेकिन फिर भी उसके खेमे में जश्न का माहौल रहा क्योंकि कांग्रेस के नेता जानते हैं कि जहां वे जीते हैं या सबसे आगे रहे हैं उसका मतलब क्या है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ रहे हैं और राजस्थान में सरकार उसी की थी। गौरतलब है कि कुछ महीने बाद लोकसभा के चुनाव हैं।

चुनावी विश्लेषण का सबसे संवेदनशील बिंदु यह है कि जनता ने आखिर हिंदी पट्टी के राज्यों में राज्य सरकार के खिलाफ वोट दिया है या उसकी नाराजगी केंद्र से भी है? यह सवाल इसलिए भी अहम है कि पंद्रह साल मध्यप्रदेश में शासन करने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान जैसी बात सामने नहीं आई थी। राज्य और केंद्र के चुनाव भले अलग-अलग हों, पर वे एक-दूसरे को प्रभावित कर सकते हैं या नहीं यह इस पर निर्भर करता है कि चुनाव कब हो रहे हैं और उनके मुद्दे क्या हैं। भाजपा ने हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश तक चुनाव प्रधानमंत्री की लोकप्रियता के बल पर जीता था।

मध्यप्रदेश में शिवराज और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह अलोकप्रिय नहीं माने जाते। यह बात सिर्फ वसुंधरा राजे के बारे में कही जा रही थी कि जनता उनसे नाराज है। खास बात अब यह है कि राजस्थान कांग्रेस में खेमेबाजी भी थी जो टिकट वितरण के समय से की जा रही थी। उस नुकसान के बावजूद अगर जीत मिली है तो सोचने का विषय है कि यह कांग्रेस से उम्मीद का जनादेश है या भाजपा से नाराजगी का! अगर जनता नाराज है तो उसके कारण पहचान कर उन्हें दूर करना भाजपा की प्राथमिकता होनी चाहिए। लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं है ऐसे में भाजपा को आत्ममंथन करना ही होगा। इन परिणामों को सिर्फ विधानसभा चुनाव के लिए जनता का मूड समझ लेना ऐसा सरलीकरण होगा जो उसे बहुत भारी पड़ सकता है।
अमन सिंह, बरेली कॉलेज, बरेली

दूषित सोच: गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में कानून की परीक्षा में एक समुदाय विशेष के नाम वाले युवा द्वारा गाय को मारना अपराध है अथवा नहीं, यह प्रश्न पूछा जाना बेहद अफसोसनाक है। यह सवाल दिखाता है कि हमारी उच्च शिक्षण संस्थाओं में कैसा सांप्रदायिक द्वेष रखने और समाज को विखंडित करने वाले लोग बैठे हुए हैं। विश्वविद्यालयों में प्रश्नपत्र बनाने के कई स्तर और तरीके होते हैं। ‘पेपर सेटर’ के पर्चा बनाने के बाद ‘मॉडरेटर’ उसे देखते हैं। इस मामले में भी अगर ऐसा हुआ होगा तो यह चूक दो स्तरों पर हुई है। विश्वविद्यालय ने इस मामले में माफी तो मांग ली है लेकिन उसने प्रश्नपत्र नियोजक के खिलाफ क्या कदम उठाए हैं यह साफ नहीं किया है। इस मामले में न सिर्फ विश्वविद्यालय को कड़े कदम उठाने चाहिए बल्कि जिस संस्था में वह शिक्षक कार्यरत है उस संस्था को भी उचित कदम उठाने चाहिए।
संदीप भट्ट, मध्यप्रदेश

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