प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आकलन का समय आ गया है। 250 दिनों से ज्यादा वक्त से रायसीना हिल्स पर उनका एकक्षत्र राज है। मोदी पूंजीवाद की उपज हैं। जिस तरीके से उन्होंने भारतीय बाजार की संभावित शक्ति को मंदी के दौर में वैश्विक मंडी में पेश किया है वह काबिलेतारीफ है। बाजार ने मोदी को पुरस्कृत किया है तो वह अब उन्हें परिष्कृत भी कर रहा है।

लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी अपने इतिहास और भूगोल के ज्ञान से बुद्धिजीवियों को चकित कर चुके हैं। अब वे इतिहास और मिथक का घालमेल कर विज्ञानियों को आश्चर्यचकित करने लगे हैं। हमें समझना होगा कि अतीत का गुणगान बुरा नहीं अगर उसका ठोस तार्किक आधार कोई हो तो। लेकिन हम अपना वर्तमान भी तो ऐसा रचें कि भविष्य के लोग उसे गौरवशाली अतीत मान कर उस पर चिंतन-मनन और शोध कर सकें।

अपने कुछ मंत्रिमंडलीय सहयोगियों और ‘परिवार’ के आनुषंगिक संगठनों के अमर्यादित और असंवैधानिक आचरण पर उठते सवालों से बेखौफ मोदी की खामोशी और निर्जीव चेहरे से झांकती भावहीन आंखें ‘चार्ली’ के ‘तानाशाह’ की याद ताजा कर देती हैं। मोदी अपने चयन पर इतने आश्वस्त कैसे हैं? या उन्होंने काम का बंटवारा कर लिया है; प्रधानमंत्री मोदी संविधान को देखेंगे और उनके लोग ‘पार्टी’ और ‘परिवार’ का खयाल रखेंगे! ऐसे कार्य-विभाजन पर तो लंदन के हाइगेट क्रबिस्तान की एक कब्र में चिरनिंद्रा में लीन कार्ल हेनरिक मार्क्स भी सर धुन रहे होंगे।

पर खुद मोदी के भी संविधान से इतर आचरण को कैसे देखा जा सकता है? 1991 में उदारीकरण के बाद भारत में पहली बार केंद्र में बहुमत की सरकार ही नहीं बनी है बल्कि इसका मुखिया जो कहता है वह नहीं पर जो करना चाहता है उसके लिए उसे चाहे जो करना पड़े, जरूर करता है। ओबामा समेत विश्व के अग्रणी पूंजीवादी मुल्कों के नेताओं की रुचि मोदी में इसी वजह से है। भारत में विकास का काम अब जोर पकड़ेगा। परमाणु करार पर व्यावसायिक समझ, भूमि अधिग्रहण कानून (अध्यादेश के जरिए) और अन्य अध्यादेशों को इसी नजर से देखने की जरूरत है।

जुलाई 2017 के बाद मोदी को किसी को ‘सुनने’ की जरूरत नहीं होगी; राज्यसभा में भाजपा को बहुमत मिल चुका रहेगा और प्रणब दा भी विदा ले चुके होंगे। संविधान संशोधन का असल काम तब शुरू होगा। आकलन है कि तब तक दो-तिहाई राज्यों में भी भाजपा की सरकारें बन चुकी होंगी। लेकिन यह तभी संभव है जब रायसीना हिल्स के शिखर पुरुष के चतुर्दिक तकनीक के सहारे तैयार आभामंडल में लालकिले से कुतुब मीनार तक के बाशिंदे पिन न चुभा दें।

मोदी को यह समझना होगा कि दुनिया के लिए भारत सिर्फ एक बाजार के रूप में नहीं बल्कि लोकतांत्रिक सह-अस्तित्व और सहिष्णुता की विशिष्टता वाली एक सभ्यता के रूप में भी है।

तमाम ‘रंगों’ के प्रगतिशील तबकों को देशव्यापी लोकतांत्रिक आंदोलन का आगाज करने की जरूरत है क्योंकि उनके ‘लोप’ की आहट सुनाई देने लगी है।

रोहित रमण, पटना विवि, पटना

 

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