अतिशयोक्तिपूर्ण बातें करना, सुनना, उनमें रस लेना और एक हद तक उनमें भरोसा करना लोक जीवन का अंग है। धार्मिक मामलों में इसकी जगह सर्वाधिक आसानी से बन जाती है। धर्मग्रंथों में लिखी हुई प्रत्येक बात को अंतिम सत्य मानना लगभग मजबूरी हो जाती है। कहा और माना जाता है कि धर्म हमारी श्रद्धा, आस्था और विश्वास का मामला है इसलिए उसे जस का तस मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। किसी भी तरह के प्रश्न, तर्क या शंका और तथ्यपरक विश्लेषण की वहां कोई गुंजाइश नहीं होती। इस प्रवृत्ति के कारण धर्म और उसके जरिए उसके कर्ताधर्ताओं को असीम शक्तियां मिल गर्इं। इन शक्तियों का भरपूर उपयोग और दुरुपयोग धर्म के मठाधीशों, प्रवक्ताओं जैसे साधु, संतों, महात्माओं, ग्रंथियों, मौलाना, पादरियों आदि ने और उनके माध्यम से तरह-तरह के निहित स्वार्थों ने किया। धर्म में सुस्थापित इस प्रवृत्ति का भरपूर लाभ समाज के विभिन्न क्षेत्रों में शक्ति संपन्न लोगों और राजनेताओं को भी मिला।
पहले समाज में महत्त्वपूर्ण काम करने वाले प्रतिष्ठित सज्जन राजनीति में आए। धीरे-धीरे पूंजीपतियों, अपराधियों और अन्य असामाजिक तत्त्व धन और धर्म के सहारे राजनीति में अपना स्थान बनाने लगे। सामाजिक कार्यों और नैतिक मूल्यों की कमी की भरपाई धन, धर्म और बाजार के सहारे अतिशयोक्तिपूर्ण प्रचार के द्वारा होने लगी। चुनावी सफलताओं ने अति प्रचार को ही राजनीति का पर्याय बना डाला। इससे जनमानस में धारणा बनने लगी कि अब चुनाव जीतने के लिए सामाजिक कार्यों, नैतिक मूल्यों, शराफत, विनम्रता और जनतांत्रिक तौर-तरीकों को अपनाने की जगह अति प्रचार से इन बातों का ढोल पीटना और अपने विरोधी को अधिक से अधिक बदनाम करना अधिक कारगर और फलदायी है। इस सूत्र को राजनीति का केंद्र बिंदु बना कर राजनीतिक दल चुनाव जीतने लगे। तथ्यहीन बातें, सांप्रदायिक असहिष्णुता और चरित्र हनन का भरपूर उपयोग करते हुए मोदीजी गुजरात से दिल्ली तक का सफर तय किया। दूसरे दलों ने भी कमोबेश यही किया, पर इस षड्यंत्रकारी खेल में मोदीजी का कोई मुकाबला नहीं कर सका। दिल्ली की गद्दी पाकर वे ज्यादा जोरशोर से दहाड़ने लगे और अति और मिथ्या प्रचार के बलबूते विश्व विजय के सपने देखने लगे।
भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने एक हिंदी चैनल को बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ऐसे देव पुरुष हैं जिनके भीतर ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां समाहित हो गई हैं और वे जो चाहें वह कर सकते हैं। गुजरात के राजकोट में कोठरिया रोड पर मोदीजी का मंदिर बना कर उसमें उनकी प्रतिमा लगाई। ओम युवा ग्रुप के नेता जयेश पटेल ने बताया कि गुजरात में किसी जीवित व्यक्ति का यह पहला मंदिर है। इस पर सवाल उठे तो मोदीजी को लगा कि कुछ गलत हुआ है। उन्होंने मंदिर के आयोजकों को झाड़ पिलाई। लिहाजा, वहां से मोदी की मूर्ति हटा दी गई और इस मंदिर के स्थापना का फिलहाल पटाक्षेप हो गया है। यह माना जाता है कि कुछ लोगों को हमेशा के लिए बेवकूफ बना सकते हैं, कुछ समय के लिए सभी को बेवकूफ बना सकते हैं, पर सभी लोगों को हमेशा बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। बस मोदीजी यहीं गच्चा खा गए और दिल्ली में पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।
अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों से उम्मीद की जाती है कि वे बड़बोले मोदी और उनके समर्थकों से सबक जरूर लेंगे। मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी अपनी आदत के विपरीत संयत व्यवहार करके ही मदद करनी होगी। कल तक जो अरविंद को विफल और नासमझ मान रहे थे वे आज उन्हें सर्व गुण संपन्न मान रहे हैं और पूरे देश की तस्वीर बदलने के सपने देखने लगे हैं। तस्वीर बदलने की जरूरत है, पर शॉर्टकट के स्थान पर लगातार जनता के मुद्दों पर लड़ाई लड़ कर जो अरविंद और उनके साथियों ने लड़ी, सूचना के अधिकार का कानून बनवाने के लिए लंबा संघर्ष और कानून बन जाने के बाद उसके उपयोग के लिए प्रयास, बेईमानी के खिलाफ लोकपाल कानून के लिए लड़ाई सादगी और विनम्रतापूर्वक लड़ी। जो साफ-सुथरी राजनीति के द्वारा तस्वीर बदलने के सपने देखते हैं उनके लिए ये कुछ सबक हो सकते हैं।
श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल
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