‘एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक’, साहिर लुधियानवी की इन पंक्तियों को अब इस तरह पढ़ा जा सकता है: एक प्रधान सेवक ने पहन के दस लाख का सूट, गरीबों के मनरेगा का उड़ाया है मजाक। यह मजाक उस शख्स न उड़ाया है जो अपनी सरकार को गरीबों के प्रति समर्पित बताता नहीं अघाता है।
संसद के जिम्मेवार मंच से मनरेगा का जिस दंभ, हिकारत और हेकड़ी के साथ जिक्र किया वह किसी प्रधानमंत्री की ओर से की गई अशिष्टता की पहली मिसाल है। वैसे भी मौजूदा प्रधानमंत्री जो भी करते हैं वह पहली बार ही होता है। गरीब विरोधी दर्शाने के लिए क्या मोदीजी की नीतियां पर्याप्त नहीं हैं जो उन्हें इस स्तर तक गिर कर फूहड़ प्रदर्शन करना पड़ा?
श्याम बोहरे, बावड़ियाकलां, भोपाल
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