राजनेताओं की मूर्तियों को पूजना, उनके मंदिर बनवाना या उनको देवतुल्य समझना अंधविश्वास का नया अध्याय लिख रहा है। इक्कीसवीं सदी में एक ओर विज्ञान और तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं अंधविश्वास का नया प्रचलन, बहुतेरे देशवासियों को मानसिक रूप से गौण और अंधभक्त में परिवर्तित कर रहा।

भारत लोकतांत्रिक देश है, सरकार और नेता आते-जाते रहते हैं। बावजूद इसके किसी राजनेता का व्यक्तिगत तौर पर समर्थन करना जायज है, लेकिन उनकी प्रतिमा बनाकर पूजना, धर्म और आस्था के लिए नई चुनौती है। सर्वोच्च न्यायालय को इस विषय को अति गंभीरता से लेते हुए कड़े निर्णय लेने चाहिए, जिससे नए आडंबर को रोका जा सके।

इस तरह के प्रचलन से समाज और संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा, जो देश और देशवासियों के लिए चिंता का विषय है। सवाल है कि क्या इसी तरह भारत शिक्षित, समृद्ध और विकसित राष्ट्र बनेगा?