भारतीय मुद्रा रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। बीते सोमवार को शुरुआती कारोबार में रुपए में अमेरिकी मुद्रा डॉलर की तुलना में 42 पैसे की गिरावट आई। बैंकों और आयातकों के बीच डॉलर की भारी मांग के कारण यह गिरावट आ रही है। विदेशी मुद्रा के कारोबारियों का कहना है कि अमेरिका और चीन में जारी व्यापार युद्ध के कारण रुपया दबाव में है और एक डॉलर खरीदने के लिए 72.03 रुपए देने पड़ रहे हैं। सोमवार को चीन की मुद्रा में भी भारी गिरावट दर्ज की गई थी। आखिर अमेरिकी डॉलर दुनिया भर में इस कदर मजबूत क्यों है? डॉलर की मांग ज्यादा क्यों रहती है? और दुनिया के सभी देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर को ही क्यों रखते हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब से हम रुपए की कमजोरी और डॉलर की मजबूती को समझ सकते हैं।
दरअसल, 1944 में ब्रेटनवुड्स समझौते के बाद डॉलर की वर्तमान मजबूती की शुरुआत हुई थी। उससे पहले ज्यादातर देश केवल सोने को बेहतर मानक मानते थे। उन देशों की सरकारें वादा करती थीं कि वे उनकी मुद्रा को सोने की मांग के मूल्य के आधार पर तय करेंगी। 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी थी, क्योंकि उन्हें मुद्रास्फीति से लड़ने की जरूरत थी। उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने फोर्ट नॉक्स को अपने सभी भंडारों को समाप्त करने की अनुमति देने के बजाय डॉलर को सोने से अलग कर दिया। आज अमेरिकी डॉलर की पहचान एक वैश्विक मुद्रा की बन गई है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर और यूरो काफी लोकप्रिय और स्वीकार्य हैं। दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है उसमें 64 फीसद अमेरिकी डॉलर होते हैं।
इंटरनेशनल स्टैंडर्ड आॅर्गनाइजेशन के अनुसार दुनिया भर में कुल 185 मुद्राएं हैं। हालांकि इनमें से ज्यादातर मुद्राओं का इस्तेमाल अपने देश के भीतर ही होता है। कोई भी मुद्रा दुनिया भर में किस हद तक प्रचलित है यह उस देश की अर्थव्यवस्था और ताकत पर निर्भर करता है। दुनिया की दूसरी ताकतवर मुद्रा यूरो है, जिसका दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में 19.9 फीसद हिस्सा है। आज भारत अगर वैश्विक महाशक्ति बनने के मंसूबे पाले है तो उसे अपनी मुद्रा की मजबूती पर भी ध्यान देना चाहिए।
’संजीव कुमार, एमएस डिग्री कॉलेज, सहारनपुर
बेतुके बोल
भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का कहना है कि विपक्ष ने भाजपा के नेताओं पर मारक शक्ति का प्रयोग किया है, इसीलिए एक के बाद एक उनकी मृत्यु हो रही है। यह बयान बेतुका होने के साथ निंदनीय और समझ से परे है। एक सांसद के मुंह से ऐसी अंधविश्वासपूर्ण बातें शोभा नहीं देती हैं। वैसे प्रज्ञा ठाकुर अपने अनापशनाप बयानों के लिए कुख्यात हैं। भाजपा ने उन्हें फर्श से उठा कर अर्श पर बैठाया पर अपने विवादित बयान से वे भाजपा का ही नुकसान करने में लगी हैं। सोचने-समझने की बात है कि ऐसी कोई मारक शक्ति नहीं होती है। जीवन है तो मृत्यु तय है। यह प्रकृति का नियम है। इस प्रकार के अंधविश्वासी बयान किसी को भी नहीं देने चाहिए।
’हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन