आजादी के इतने साल बाद भी जब कोई आतंकी घटना होती है तो इसके बाद अब सबसे ज्यादा आतंकित मुसलिम समुदाय होता है। कुछ समय पहले मालेगांव में भारतीय मीडिया और पुलिस द्वारा घोषित कथित ‘आतंकवादियों’ को अदालत ने तकरीबन छह-सात साल बाद बाइज्जत बरी कर दिया। उनकी जिंदगी के छह-सात साल की क्षतिपूर्ति कैसे होगी? जिन पुलिस वालों ने इन नौजवानों पर झूठे आरोप लगा कर चार्जशीट फाइल की थी, क्या अब उन पर किसी तरह की कार्रवाई होगी? क्या आज तक किसी पुलिस अधिकारी पर इस बिना पर कोई कार्रवाई हुई है? पीड़ितों और उनके घर वालों ने समाज में एक आतंकवादी के रिश्तेदार के रूप में जो यातनाएं झेली हैं, उसका मुआवजा क्या होना चाहिए! ऐसे ढेर सारे सवाल हैं, जिनके जवाब कभी नहीं सामने आ पाएंगे।

आज आलम यह है कि जब किसी को पुलिस आतंकवादी कह कर उठाती है तो बहुत सारे लोग यह अनायास सोचने लगते हैं कि फिर शायद किसी निर्दोष को उठा लिया गया… अब सालों जेल में यों ही रखेंगे। ऐसी प्रतिक्रिया बहुत स्वाभाविक है। ऐसे लगातार मामलों के चलते एक खास समुदाय के बड़े हिस्से का भरोसा उठता जा रहा है। अब एक न्यायपालिका बची है जो तमाम शिकायतों के बावजूद आतंकवादी घोषित करके सालों जेल में बंद रखे गए लोगों को आजाद तो कर देती है!

अब्दुल्लाह मंसूर, दिल्ली</strong>


जीव का आधार
महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी जानवरों के संरक्षण के लिए समर्पित हैं, जो बहुत अच्छी बात है। पिछले दिनों नीलगायों के मारे जाने पर उनका प्रचंड विरोध स्वाभाविक था। अब इस पर एक बड़ा सवाल यह उठता है कि तेजी से बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण से जल, जंगल और जमीन बड़ी तेजी से घटते जा रहे हैं, जो सभी जीवों का मूल आधार है। ऐसे में इन सब सहायक जीवों की रक्षा कैसे होगी? इसलिए सबसे पहले बड़े स्तर पर जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए तेजी से बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण को नियंत्रित करना होगा, जिससे इन सब संबंधित समस्याओं हल निकाला जा सकता है। इसके लिए उन्हें एक बहुत बड़ा अभियान और आंदोलन चलाने की जरूरत है, जिसमे जागरूक जनता उनके साथ हो।

वेद मामूरपुर, नरेला