पिछले दिनों केंद्र सरकार ने डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ा कर पैंसठ साल कर दी। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि डॉक्टर का काम एक विशेषज्ञता वाला काम है। फिर, देश में डॉक्टरों की कमी भी है। पर क्या यही समाधान है? देश में हर साल जितने नए डॉक्टर तैयार होते हैं उनमें से बहुत-से ज्यादा कमाई के लिए विदेश चले जाते हैं। इस तरह उन्हें डॉक्टर बनाने पर किया गया देश का खर्च बेकार चला जाता है। फिर, देश में मौजूद डॉक्टरों में विशेषज्ञ डॉक्टर कम ही होंगे जो सरकारी सेवा में रहना चाहते हैं। जो रहते हैं वे निजी क्षेत्र से मनमाफिक पैकेज मिलते ही चले जाते हैं। प्राइवेट विशेषज्ञ डॉक्टर संपन्न इलाकों में क्लीनिक खोलते हैं। देश भर में उनकी मौजूदगी में भारी क्षेत्रीय विषमता देखने को मिलेगी। ऐसे में सरकार को पूरी समस्या पर विचार करना चाहिए था। पर उसने सरकारी डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा बढ़ा कर मानो मान लिया कि इससे आमजन को चिकित्सा सेवा की उपलब्धता आसान हो जाएगी। जहां समस्या की समझ ही आधी-अधूरी हो, वहां समाधान की क्या उम्मीद की जाए?
अलका अग्रवाल, विवेक विहार, दिल्ली</strong>