केंद्र में मोदीजी की सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर भाजपा खेमे में जबरदस्त उत्साह और उमंग है। कार्यकर्ताओं से लेकर शीर्ष नेतृत्व के लोग अपनी उपलब्धियां बता कर खुशियां मना रहे हैं। मौका बेशक जश्न का है, आखिर कितने झंझावात झेलते हुए सरकार ने दो साल पूरे कर लिए! लेकिन आम लोगों को इन दो सालों में क्या मिला यह गौर करने योग्य है। दो वर्षीय कार्यकाल में जो उपलब्धि सरकार की रही उसे विज्ञापनों में इस तरह दिखाया जा रहा है मानो आज से पहले ऐसा हुआ ही नहीं। सब कुछ मोदीजी की सरकार के समय में पहली बार हुआ मनवाया जा रहा है। पिछले दिनों अखबारों के पूरे पन्ने में प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ कहा गया, ‘अबकी बार मिटा भ्रष्टाचार’, ‘अबकी बार विकास ने पकड़ी रफ्तार’। देश में किसानों और छात्रों की आत्महत्याओं का सिलसिला बेशक न थम रहा हो लेकिन प्रचार किया जा रहा है कि ‘अबकी बार किसान विकास में हिस्सेदार’, ‘युवाओं को अवसर अपार’।
यह केवल केंद्र में मोदीजी की सरकार की कहानी नहीं है। दिल्ली, झारखंड, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश जैसे कई प्रदेशों का यही हाल है। जनता के पैसों से विकास का काम बेशक न हो पर उसका दिखावा जरूर होता है। या जितना काम होता है उससे कई गुना ज्यादा उसका प्रचार किया जाता है। दरअसल, अब यह देश भी कॉरपोरेट की तर्ज पर चल निकला है। यहां केवल आर्थिक नफा-नुकसान के हिसाब से काम होता है। इस नफा-नुकसान के खेल में उत्पादों का विज्ञापन बहुत अहम है। अब किसी चीज को अच्छी दिखाने के लिए उसकी अच्छी पैकेजिंग तो जरूरी है! इसलिए सरकार अपनी योजनाओं पर लोक लुभावन चाशनी चढ़ा कर उन्हें पहले बाजार में लाती है और फिर लोगों तक पहुंचाने के लिए अखबार, टीवी चैनलों आदि का प्रयोग। जब उत्पाद चल निकला तो उसका मुनाफा भी मिलेगा ही! सरकारों द्वारा अपनी उपलब्धियां बताने का इरादा भी यही है।
अपना दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने पर भाजपा नेताओं द्वारा जिस तरह जश्न मनाया जा रहा है वह हास्यास्पद और गंभीर है। हास्यास्पद इस मायने में कि सुशासन लाने, भ्रष्टाचार दूर करने, अच्छे दिनों का सपना दिखने वाली सरकार भले अपनी उपलब्धियां गिनाती हो लेकिन आम लोगों के लिए तो वही स्थिति है जो दो वर्ष पहले थी। न बाजार में किसी चीज के दाम कम हुए, न युवाओं को रोजगार मिला और न किसानों को फसल का उचित लाभ। उद्योग-धंधे लगाने की बात तो अब कहीं होती ही नहीं। यदि ऐसा होता तो आज जश्न जनता मनाती, नेता और कार्यकर्ता नहीं। जनता तो उलटे परेशान दिख रही है कि जश्न का दौर खत्म होते ही उस पर महंगाई का और बोझ लादा जाएगा। केवल प्रचार के बल पर सरकारें नहीं चलतीं। जनता की सुविधाओं का खयाल नहीं रखा गया तो यह जश्न स्थायी नहीं रहेगा।
अशोक कुमार, तेघड़ा, बेगूसराय