भारत को चार ऋतुओं का देश भी कहा जाता है। यहां सर्दी, गर्मी, बसंत, बरसात सभी अपने-अपने समय पर आकर देश की प्रकृतिक सौंदर्य को चार चांद लगाते हैं। लेकिन जिस तरह मौसम का चक्र गड़बड़ा गया है, उसे देख कर यही लगता है कि हमारे देश में एक या दो ही ऋतुएं रह जाएंगी। इसके लिए सिर्फ इंसान ही जिम्मेवार है। बर्फ के पहाड़ों पर भी गर्मी का असर साफ दिखने लगा है, जिस कारण धरती पर तापमान दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यहां तक कि बर्फ के पहाड़ों को भी गर्मी धीरे-धीरे अपनी चपेट में ले रही है। बर्फ के पहाड़ अगर इसी रफ्तार से गरम होते रहे तो ग्लेशियर पिघल कर धरती पर बहुत तबाही भी ला सकते हैं।
महात्मा गांधी ने पर्यावरण और सतत् विकास पर कहा था कि आधुनिक शहरी औद्योगिक सभ्यता में ही उसके विनाश के बीज निहित है। इंसान ने अपने हाथों ही प्रकृति की नाक में दम करके अपने और अन्य प्राणी जाति का विनाश का सामान तैयार कर लिया है। पर्यावरण को बचाने के लिए भारत को ही नहीं, बल्कि दुनिया के सभी देशों को गंभीरता दिखानी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को दुनिया में उठाया, लेकिन अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौते से भाग कर अपनी यह फितरत दिखा दी थी कि वह पर्यावरण संरक्षण के लिए गंभीर नहीं है। प्रदूषण के बढ़ते स्तर को रोकने के लिए सरकारों का मुंह ताकना और इसके लिए सरकारों को ही दोषी ठहराना शायद समझदारी नहीं है, क्योंकि वायु प्रदूषण को बढ़ाने के लिए आम लोग भी कम जिम्मेवार नहीं है।
’राजेश कुमार चौहान, जलंधर, पंजाब</strong>