इस साल आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगांठ का जश्न अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। कायदे से इतने समय में हमें आजादी का अर्थ और लोकतंत्र का महत्त्व समझ आ जाना चाहिए था। लेकिन आजादी को हमने उद्दंडता और मनमानी समझ लिया और लोकतंत्र को वोटों का खेल। वक्त के साथ हमारा लोकतंत्र परिपक्व होने के बजाय विकृत हो रहा है। मतदाताओं को विकास और विचारधारा के बजाय जाति, धर्म, क्षेत्र और मुफ्त की सुविधाएं देने के वादों से रिझाया जाता है। अब इसमें एक नया अध्याय जुड़ गया है- सस्ती शराब।

आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सोमू वीरराजू ने एक रैली में आंध्र की जनता से वादा किया कि अगर भाजपा 2024 के विधानसभा चुनावों में सत्ता में आई तो लोगों को पचास रुपए प्रति बोतल की मामूली दर पर गुणवत्तापूर्ण शराब उपलब्ध कराएगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में एक करोड़ लोग शराब पीते हैं और वे सभी सस्ती शराब के लिए भाजपा को वोट दें।

क्या भाजपा नहीं जानती कि शराब पीना गंभीर परिणामों वाली एक ऐसी बुराई है, जिसका पीने वाले से ज्यादा असर महिलाओं और बच्चों पर पड़ता है। आंध्र प्रदेश के चुनाव अभी दूर हैं, पर पंजाब में तो चुनाव होने वाले हैं। क्या भाजपा चुनाव जीतने के लिए नशे से जूझ रहे पंजाब में भी ऐसा कोई वादा करेगी या गुजरात, बिहार में शराबबंदी खत्म करेगी? निश्चित रूप से जवाब है नहीं। दावे से कह सकते हैं कि भाजपा सोमू वीरराजू की बात से इत्तेफाक नहीं रखती। लेकिन भाजपा इसे उनकी व्यक्तिगत राय या बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, कह कर खारिज न करे और उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करे।

कहने को हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, लेकिन लोकतांत्रिक परंपराओं और लोकतंत्र के सम्मान के मामले में हम बहुत नीचे हैं। राजनेताओं से विनती है कि वे मुद्दों पर आधारित, विकास और विचारधारा की राजनीति करें और वोट बैंक की राजनिति छोड़ दें।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद