‘पाबंदी और त्रासदी’ (संपादकीय, 15 दिसंबर) पढ़ा। शराब एक सामाजिक बुराई ही है। जो लोग बिहार में शराबबंदी का विरोध कर रहे हैं, वे यह साफ साफ कहें कि वे इस समाज और परिवार तोड़ने और गरीबों की त्रासदी कायम रखने वाली बीमारी के साथ हैं और वे इसे फलता-फूलता देखना चाहते हैं। जहां तक सवाल इसका है कि बिहार में दूसरे राज्यों से शराब तस्करी होकर आ रही है तो इसको रोकने का प्रभावी प्रयास होना चाहिए, न कि बिहार में भी शराब की खुली छूट दे देनी चाहिए।
याद रखने की जरूरत है कि कड़ा दहेज विरोधी कानून होने के बावजूद दहेज की लेन-देन हो रही है, दहेज के लिए हत्या भी हो रही है। तो क्या दहेज विरोधी कानून समाप्त कर देना चाहिए? सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीति को समाप्त करने के लिए जब कानून लाया गया था, तब उसका भी समाज के एक वर्ग ने विरोध किया था। आज भी कहीं-कहीं से सती होने की घटना की खबर सामने आ जाती है। तो क्या सती प्रथा को फिर से शुरू कर देना चाहिए?
शराब एक गंभीर सामाजिक बुराई ही है। इससे लाखों परिवार टूट रहे हैं, आर्थिक-सामाजिक रूप से बर्बाद हो रहे हैं। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को सहना पड़ता है। अगर हम महिला सशक्तिकरण को साकार करना चाहते हैं तो शराबबंदी उसका एक मजबूत माध्यम बन सकता है।
फैज रहमान, दिल्ली</strong>