राजस्थान के अलवर में हुई हैवानियत की खबर पढ़ कर ऐसा लगा जैसे 2012 में निर्भया के साथ हुई बर्बरता के जख्मों को किसी ने कुरेद दिया हो। निर्भया कांड के बाद देश में महिला अपराध को लेकर जीरो टालरेंस की बात की गई थी। इसी के साथ पाक्सो जैसे कानून अस्तित्व में आए थे, किंतु महिला अपराध खासकर दुष्कर्म जैसे बर्बरतापूर्ण कृत्यों में कमी नहीं आई। इसे देश और कानून की विफलता न कहें तो क्या कहें? जिस देश में बेटियों को देवियों के समरूप समझा जाता हो, वहां कदम-कदम पर उनका उत्पीड़न, उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, अंतर्निहित पूर्वाग्रह और प्रतिकूल कार्य-व्यवस्था आदि देश के कानून पर गहरा तमाचा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक 2020 में दिल्ली में बलात्कार के 967 मामले दर्ज किए गए। देश की राजधानी में बलात्कार के इतने मामले देख कर लगता नहीं है कि हमने जीरो टालरेंस की बात पूरी कर ली है। दुनिया में सबसे ज्यादा सीसीटीवी कैमरे वाला शहर दिल्ली है, फिर भी अपराधियों का न पकड़ा जाना, उनका मजे से घूमना बहुत चुभता है।

अलवर में भी पुलिस ने तीन सौ सीसीटीवी खंगाले, पर कोई सुराग हाथ नहीं लगा। यह साबित करता है कि कानून कितना भी सख्त हो, उसमें सूराख रह ही जाते हैं। सवाल है कि हम तो ख्वाबों में देश को जगद्गुरु बनता देखते हैं, पर हकीकत में देश किस ओर जा रहा है? बाबा साहब आंबेडकर ने कहा था कि किसी समाज की उन्नति इस बात से तय होती है कि उसमें महिलाओं की स्थिति क्या है। अलवर जैसी घटनाएं तो सीधा संकेत हैं कि हमें उन्नत होने के लिए महिलाओं के सम्मान, समानता, स्वतंत्रता आदि पर युद्ध स्तर के कार्य की आवश्यकता है।

कौंतेय दीपक, उन्नाव