इस साल देश के विभिन्न राज्यों में अच्छी बारिश हुई है। लेकिन कुछ राज्यों में अधिक बारिश हुई। इससे जानमाल का भारी नुकसान हुआ और साथ ही कृषि को भी नुकसान हुआ। ऐसी स्थिति में कई लोग बेघर हुए। देश के कई राज्यों में मानसून खत्म हो गया है, लेकिन उत्तराखंड और केरल राज्य अपवाद हैं। इन राज्यों में अक्तूबर में भी मूसलाधार बारिश हो रही है।

यह दिखाता है कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। ये दोनों राज्य प्राकृतिक रूप से में समृद्ध हैं। पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए प्रकृति को आहत नहीं करना चाहिए। प्रकृति अपनी प्राकृतिक अवस्था में अच्छी लगती है। लेकिन मनुष्य इसमें हस्तक्षेप करता है। इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

उत्तराखंड और केरल दोनों पहले ही भारी बारिश की चपेट में आ चुके हैं। ऐसा अब हर साल हो रहा है। उत्तराखंड राज्य पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहां सबसे ज्यादा भूस्खलन होता है। इससे बचाव कार्य में भी बाधा आती है। नतीजतन, दूरदराज के इलाकों में लोगों को मदद करने के लिए हेलीकाप्टर का उपयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

उत्तराखंड, केरल में बाढ़ में फंसे कई लोगों को भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के जवानों ने सुरक्षित निकाल लिया। भारतीय सेना के जवान भी रेस्क्यू आंपरेशन में जुटे हैं। उनका राहत कार्य आज भी जारी है। भारतीय वायुसेना उन जगहों पर पहुंच रही है, जहां पैदल मदद करना संभव नहीं है।

आतंकवादी संकट हो या प्राकृतिक आपदा, भारत की तीनों सेनाएं लोगों की मदद के लिए तैयार हैं। उनका बचाव कार्य कितना तेज और सटीक है। यह मीडिया के माध्यम से देश को पता चल रहा है। तीनों सेनाओं का हर कार्य ऐसा है, जिस पर देश के प्रत्येक नागरिक को गर्व लगता है। तीनों सेनाओं के साथ एनडीआरएफ की टीमें भी बचाव कार्य में लगी हुई हैं।

कठिन समय में लोगों को बचाने, उन्हें भोजन, पानी और आश्रय प्रदान करने के लिए सेना और एनडीआरएफ की टीम द्वारा किया जा रहा कार्य उल्लेखनीय होता है। एक तरफ प्रकृति का रुद्रावतार है, तो दूसरी तरफ बचाव दल लोगों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं। प्रकृति के प्रकोप के सामने कुछ भी काम नहीं करता।

यह मनुष्य पर निर्भर है कि वह प्रकृति के क्रोध को तब तक सहे जब तक कि वह शांत न हो जाए। अगर हम प्रकृति को परेशान नहीं करेंगे तो हमें भी परेशानी नहीं होगी। इस जानकारी के बावजूद भी प्रकृति को प्रताड़ित किया जा रहा है। तो प्रकृति का क्रोधित होना स्वाभाविक है। हम सोच भी नहीं सकते कि उसके वार कितने भयानक होते हैं। अगर हम प्रकृति की देखभाल करते हैं, तो प्रकृति भी हमारा खयाल रखती है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, इसलिए हमें प्रकृति का प्रकोप सहना पड़ रहा है।

जयेश राणे, मुंबई</em>