उत्तराखंड स्थित सुप्रसिद्ध जोशी मठ अचानक भूस्खलन और धंसाव स्थल घोषित किया जा चुका है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से लेकर भारत के प्रधानमंत्री भी जोशीमठ की सुरक्षा और इसके बचाव के लिए सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। यह अच्छी बात है और इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक, धार्मिक और पर्यटन स्थल की समुचित सुरक्षा के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किया जाना जरूरी है।

पर अत्यंत दुर्भाग्यजनक सच्चाई यह भी है की विगत अनेक वर्षों से निरंतर भयावह रूप लेती जा रही इस मानव निर्मित त्रासदी को जानबूझ कर अनदेखा किया जाता रहा है। अनियंत्रित निर्माण एवं खुदाई के चलते विगत दशकों में जोशीमठ की निरंतर गंभीर होती जा रही सुरक्षा व्यवस्था को लेकर लगभग सैंतालीस आयोग गठित किए गए और लगभग सभी ने भयावह नतीजों की आशंका जताई। लेकिन कभी भी इस विषय को आवश्यक गंभीरता से नहीं लिया गया।

अब इस मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव ने स्थिति की समीक्षा की है और उत्तराखंड के मुख्य सचिव से हालात की जानकारी तलब की गई है। त्वरित रूप से जोशीमठ के कुछ आवास स्थलों और होटलों को खाली भी कराया गया है। उम्मीद है कि अब इस विषय में उच्च स्तरीय सुरक्षा उपाय किए जाएंगे और जोशीमठ का संरक्षण सुनिश्चित होगा।

इसके अलावा, जोशीमठ प्रकरण से शिक्षा लेते हुए पहाड़ी राज्यों में स्थित देश के दूसरे अनेक ऐसे प्रसिद्ध और सुरम्य धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों की भी पर्याप्त समीक्षा की जानी चाहिए जो अनियंत्रित विकास और अंधाधुंध निर्माण कार्यों के कारण दुर्दशा को प्राप्त हो रहे हैं। प्रकृति में अनावश्यक दखल की एक निश्चित सीमा है, जिसे पर करना कभी भी उचित नहीं होता।

इशरत अली कादरी, खानूगांव, भोपाल</strong>