लखीमपुर खीरी हत्याकांड जांच की चार्ज सीट में मंत्री के एक और करीबी को आरोपी बनाया गया है। इसके साथ गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। मंत्री के साले पर भी एसआइटी को गुमराह करने का आरोप लगा है। लखीमपुर खीरी के तिकोनिया कांड में जांच टीम ने सीजेएम अदालत में मामले की जांच पूरी करते हुए चौदह आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।
करीब तीन महीने तक चली जांच में एसआइटी ने यह साफ कर दिया कि तीन अक्तूबर को तिकोनिया में हुई हिंसा को सोच-समझ कर हत्या करने के इरादे से अंजाम दिया गया था। किसानों के वकील का कहना है कि ‘माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह पूरा मामला चल रहा है। माननीय न्यायालय के निर्णय पर पूरा भरोसा है कि किसानों को न्याय मिलेगा और मैंने चार्जशीट दाखिल करवा दी है। कोर्ट ने इस पूरे मामले की देखरेख के लिए पंजाब हाईकोर्ट के रिटायर जज राकेश जैन, एडीजी इंटेलीजेंस, आइजी पद्मजा चौहान और डीआइजी प्रीतिंदर सिंह की समिति गठित की है।’
लखीमपुर-खीरी कांड में एसआईटी ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा और उनके चचेरे साले वीरेंद्र शुक्ला का नाम आईपीसी की धारा 201 के तहत बढ़ाया गया है। वे ब्लाक प्रमुख भी हैं। लखीमपुर खीरी के इतने बड़े हत्याकांड में आखिर इतनी देरी क्यों, अब सवाल उठता है कि क्या यह पूरा मामला सत्ता पक्ष के किसी मंत्री से संबंधित है, शायद इसीलिए। क्या यूपी चुनाव में ब्राह्मण वोटों का समीकरण बिगड़ने का डर है?
क्या लखीमपुर खीरी का पूरा मामला सरकार के गले में मछली के कांटे की तरह अटक गया है, जो न तो अंदर जा रहा है और न ही बाहर आ रहा है। क्योंकि एक तरफ ब्राह्मण समुदाय के नाराज होने का डर है, दूसरी तरफ किसानों का मामला है। कानपुर मुठभेड़ से ब्राह्मण पहले से नाराज हैं और इधर किसान तो खफा हैं ही। सरकार समझ नहीं पा रही है कि आखिर करे तो क्या करे।
शोएब सलमानी, दिल्ली</em>