आज कई राजनीतिक और सामाजिक संगठन हिंदू आस्था की तुलना करते नजर आ रहे हैं। अभी बसपा प्रमुख का बयान आया, पिछले दो दिनों से सपा प्रमुख भी सक्रिय हैं, ओवैसी धमकी के मूड में हैं, अन्य दलों के प्रवक्ता भी बेतुके बयान दे रहे हैं। पर अगर कोई अजमेर शरीफ की तुलना किसी सड़क पर बनी अवैध मजार से करे तो क्या सही है। अगर कोई काबा की तुलना किसी अन्य गली-मोहल्ले की मस्जिद से करे, तो क्या यह उचित है। इसी प्रकार अन्य मंदिरों की तुलना अगर कोई अयोध्या और मथुरा के जन्मस्थान से करे तो कितना उचित है। काशी के बारे में तो प्रचलित है कि यहां का कंकड़ कंकड़ शंकर है।
ऐसे में सिर्फ गलत को सही साबित करने के लिए, एक सहिष्णु समाज की आत्मा पर कुठाराघात करते लोग क्या सही हैं। क्या इस देश के अंतर्मन से राम, कृष्ण और विश्वनाथ को निकाल पाना संभव है। जो एक हजार साल में नहीं हो सका, क्या अब हो पाएगा। शायद मामला पेचीदा हो जाएगा, अगर इसी तरह गलत को सही ठहराने के प्रयास होते रहे।
मनोज, मेरठ</strong>