हरिद्वार में धर्म संसद के कार्यक्रम में शामिल कुछ धर्म और समाज के ठेकेदारों द्वारा ऐसी खराब और अपमानजनक वार्ता की गई, जिससे आज तूफान-सा मच गया है। हिंदुत्व के प्रवक्ताओं द्वारा लोगों को भड़काने के लिए नफरत भरे भाषण दिए गए। यहां तक कि उन्हें शस्त्र उठाने के लिए भी भड़काया गया। हमें यह समझना जरूरी है कि हिंदुत्व एक धर्म नहीं, मानवीयता की विचारधारा है।

हिंदू धर्म है। भारत देश आज भी एक लोकतंत्र है, जहां धर्मनिरपेक्षता संवैधानिक अधिकार है। किसी के खिलाफ जबर्दस्ती करने पर कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान है। पर अगर यह प्रावधान है तो उन भड़काऊ प्रवक्ताओं पर कानूनी कार्रवाई होना चाहिए।

विडंबना यह है कि कुछ राजनीतिक दलों और इन असामाजिक तत्त्वों की मिलीभगत से ऐसे लोग गंभीर आरोपों से बच जाते हैं जो शर्मनाक बात है। दूसरे धर्म के लोगों को मारने का संदेश देकर अपने धर्म का राष्ट्र बनाने की सोच रखना ही अपराध है, पर आज यह खुलेआम देखने को मिल रहा है। आज कोई धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखता है तो उसे भी नकली देशभक्ति सिखाते हैं और एक विचारधारा को पालने पर मजबूर करते हैं जो संवैधानिक अधिकार का हनन है।

सवाल है कि इस तरह नफरत और हिंसा में डुबा कर हिंदू धर्म में विश्वास रखने वाले युवाओं को कौन-सी दिशा दी जा रही है? क्या हमारी भावी पीढ़ियां अयोग्य और अक्षम होकर नफरत और हिंसा में जीने के लिए तैयार हो रही हैं?
’सौम्या गुप्ता, भोपाल, मप्र