मीडिया, जिसे जानकारी का स्रोत माना जाता है, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, वही आज अफवाहों के दौर के लिए जिम्मेदार माना जाने लगा है। ऐसा पहली बार नहीं है, पहले भी हो चुका है। कोरोना काल में यह काम भयावह रूप में इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो चुका है। लाकडाउन के शुरुआती दौर में हम सब एक धर्म को कोरोना फैलाने का जिम्मेदार मान बैठे थे।
उस वक्त तो गली-गली, गांव-गांव में इसका प्रभाव दिखने लगा था। सच ही कहा है कि मीडिया अगर किसी को बना सकता है, तो किसी को गिरा भी सकता है। पर सवाल है कि क्या हम इतने नासमझ हैं कि गलत और सही में फर्क नहीं कर सकते?
अफवाह केवल एक झूठ होता है, जिसे हम जैसे लोग तवज्जो देकर बढ़ावा देते हैं। अफवाह फैलाने वाले तो रहेंगे, पर फैसला हमारे हाथ में है कि उसे तवज्जो दें या नजरअंदाज कर आगे बढ़ें।
’राखी पेशवानी, भोपाल</p>