दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में पास हो गया है। अब उपराज्यपाल को और अधिक शक्तियां प्राप्त हो गई हैं। यह बिल दिल्ली की जनता द्वारा चुनी गई सरकार के पर कतरने वाला है जो सरासर लोकतंत्र की हत्या हैै। जब भी दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए हैं, भाजपा ने अपने घोषणा-पत्रों में वादा किया था कि उसकी सरकार बनती है तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए सब कुछ किया जाएगा। लेकिन दिल्ली की जनता ने चुनाव में हार के बाद केंद्र के जरिए जनता की चुनी गई सरकार का कद छोटा करने के लिए नया संशोधन बिल लाया गया, जिसमें उपराज्यपाल सर्वेसर्वा सरकार के रूप में होंगे।
जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का कोई महत्त्व नहीं रह जाएगा। दिल्ली सरकार और उसक मंत्रिमंडल सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य कोई फैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है। यक्ष प्रश्न यह है कि अगर दिल्ली में भाजपा की सरकार होती तो क्या सरकार उक्त बिल को कानून की शक्ल देती? फिर यह लोकतंत्र पर कुठाराघात क्यों? फिर विधानसभा चुनाव कराने के क्या मायने? एक तरफ अपने घोषणापत्र में पूर्ण राज्य की बात करना, दूसरी तरफ संशोधन कानून से लगाम कसना, यह तो सरासर लोकतंत्र को कमजोर करने की कवायद है।
’हेमा हरि उपाध्याय, उज्जैन, मप्र