संपादकीय ‘नाहक नकेल’ (3 फरवरी) पढ़ा। कोरोना महामारी पूरी मानवता के लिए सिरदर्द बन चुकी है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए हर व्यक्ति को अपने नागरिक धर्म का पालन और सरकार द्वारा जारी निर्देशों पर अमल करना चाहिए। कोविड प्रोटोकाल के तहत मास्क पहनना, सामाजिक दूरी का पालन करना और कहीं पर भी न थूकना आदि शामिल है।

सरकार ने कोविड प्रोटोकाल के उल्लंघन को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा है। इसके पालन पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी पुलिस के ऊपर है। कोविड प्रोटोकाल के उल्लंघन में सभी राज्य सरकारों ने हजारों करोड़ जुर्माना के तौर पर वसूल किया है, पुलिस की ऊपरी आय अलग है। पुलिस के लिए मास्क न पहनने पर जुर्माना लगाना सबसे आसान काम है।

कभी-कभी अकेले बंद गाड़ी में चल रहे व्यक्ति के ऊपर भी पुलिस ने मास्क न पहने पर जुर्माना लगा दिया है, जबकि सामान्य दृष्टिकोण से यह एक अव्यावहारिक कदम है। बंद गाड़ी में व्यक्ति किसी को संक्रमित नहीं कर सकता है, इसी बात को ध्यान में रखकर दिल्ली उच्च न्यायालय ने पुलिस को फटकार लगाई है।

पुलिस को कानून के प्रति लकीर का फकीर नहीं होना चाहिए। कोविड प्रोटोकाल के उल्लंघन में प्रशासन के अधिकारी भी शामिल है, क्योंकि उन्हें सरकारी आदेश का भय नहीं है। आम जनता को भी कोविड प्रोटोकाल के पालन के प्रति संजीदगी दिखानी चाहिए। इतनी बड़ी आबादी पर पुलिस की निगरानी संभव नहीं है।