भारतीय राजनीति में पिछले कुछ वर्षों में बड़े बदलाव हुए हैं। पक्ष-विपक्ष में पहले कभी नीति और विचारधाराओं में मतभिन्नता होने के बावजूद एक-दूसरे का व्यक्तिगत और हर पद का सम्मान कायम था। आज नीतियों पर स्वस्थ चर्चा करने के बजाय व्यक्तिगत आक्षेप अधिक लगने लगे हैं। सरकार की किसी भी उपलब्धि को स्वीकार करना तो दूर, उसे असंवैधानिक और देश के लिए घातक बताने का प्रयास किया जाता है। अपने राजनीतिक फायदे के लिए सरकार की किसी गतिविधि के खिलाफ मोर्चा खोल कर लोगों को भड़काने का कार्य किया जाता है, चाहे वह देशहित में ही क्यों न हो।
कभी समय था जब देश पर चीन और पाकिस्तान की ओर से आक्रमण हुए या देश में अकाल की स्थिति आई, तब पूरा विपक्ष और समस्त देशवासी सरकार के साथ खड़े दिखाई दिए। लेकिन पुलवामा हमले के प्रत्युत्तर में भारत सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक करवाई की, तो विपक्षियों ने उसे झूठी कार्रवाई बताया और उसके सबूत मांगने शुरू कर दिए। इससे न केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश की छवि धूमिल हुई और सेना के सम्मान को चोट पहुंची।
सरकार कोई कानून अपनी प्रजा के हित के लिए ही बनाती है। ऐसा हो नहीं सकता कि चंद उद्यमियों के फायदे के लिए सरकार कोई कानून बनाए और उस कानून से बहुसंख्यक नागरिकों का अहित हो, लेकिन देश में बहकाने-भड़काने का फार्मूला इतना फलीभूत हो रहा है कि इसी का फायदा विपक्ष के लोग उठा रहे हैं। यह सही नहीं है, ऐसा होना देश के विकास की गति को अवरुद्ध करने वाला है।
हो सकता है, कुछ समय बाद बहकावे में आने वाले लोग वर्तमान सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की महत्ता को समझें, लेकिन उस वक्त तक न जाने कितने अवसर उनके हाथों से निकल चुके होंगे।
’सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी