अब जबकि नोटबंदी का एक साल पूरा हो चुका है तो स्वाभाविक ही लोगों के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि इससे उन्हें और देश को क्या फायदा हुआ! नोटबंदी को भ्रष्टाचार के विरुद्ध पहल बताया गया था, लेकिन सरकार ने जो उम्मीद जगाई थी, वह धराशायी हो गई। समय बीतने के साथ-साथ आशा ने निराशा का स्थान लेना शुरू कर दिया है, क्योंकि इसके प्रभाव सकारात्मक तो कुछ दिखे नहीं, नकारात्मक जरूर दिख रहे हैं। काला धन के खिलाफ उठाया गया यह कदम लगभग निन्यानबे फीसद पुराने नोटों के वापस आ जाने से नाकाम प्रतीत हो रहा है। जबकि एक रिपोर्ट के मुताबिक छह से आठ प्रतिशत काला धन नकदी रूप में था। सरकार द्वारा उठाए गए इस ऐतिहासिक कदम का उद्देश्य शुरू से ही बदलता रहा। नोटबंदी की घोषणा के समय इसके काले धन के खिलाफ ‘ब्रह्मास्त्र’ होने का दावा किया गया था, लेकिन बाद में जब कुछ हासिल होता नहीं दिखा तो इसे कैशलेस बाजार से जोड़ कर पेश किया जाने लगा। समयानुसार इसके और भी आयाम निकाले गए। शुरुआती दौर में नकदी के घोर अभाव की वजह से डिजिटल लेन-देन में वृद्धि तो हुई, लेकिन उसमें अब भी बहुत रोड़ा है। लगातार नीतियों में बदलाव ने भी इसे गंभीर चोट पहुंचाया। बैंकों में नोटों का वितरण लगभग बीस प्रतिशत कम हुआ है। यह कैशलेस लेन-देन के मकसद के लिहाज से सकारात्मक है, लेकिन कैशलेस लेन-देन में टैक्स चुकाने को देखते हुए इसकी भी एक सीमा है कि लोग इसकी ओर कितना आकर्षित होंगे। अब भी भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ पाई है और विकास दर नीचे है। ऐसे में इसे एक सीमा के रूप में देखना ज्यादा उचित होगा।
लेकिन जब सरकार नोटबंदी पर असफल होती दिखी, तब उसने भटकाने वाले तर्क गिनाने शुरू कर दिए, जिसका कोई मजबूत आधार नहीं था। नोटबंदी की मार सबसे ज्यादा असंगठित क्षेत्र के रोजगार पर पड़ी, क्योंकि यह क्षेत्र नकदी से संचालित होता है। इसकी हिस्सेदारी हमारी अर्थव्यवस्था में पैंतालीस फीसद है, जिससे तिरानबे फीसद लोग जुड़े हुए हैं। इसी पर बुरी मार पड़ने की वजह से देश की विकास दर भी नकारात्मक हो गई। सरकार के जो आकड़े होते भी हैं, उनमें असंगठित क्षेत्र के सालाना आकड़े नहीं होते हैं। इसी क्षेत्र को नोटबंदी की मार ज्यादा झेलनी पड़ी है। इसका रोजगार पर भी व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सीएमआई के सर्वेक्षण के आधार पर यह दर्शाया गया है कि विमुकद्रीकरण के कारण बड़ी तादाद में कमी आई है। कुल मिला कर नोटबंदी एक ऐसा हथियार साबित हुआ, जिससे कुछ भी खास हासिल नहीं हुआ।
’नृपेंद्र अभिषेक नृप, मुखर्जी नगर, नई दिल्ली</p>