संपादकीय ‘सियासत का सलीका’ (1 अप्रैल) सत्ता पक्ष द्वारा विपक्ष को डराने-धमकाने, हिंसा करने, झूठे मुकदमों में फंसाने तथा शून्य करने की प्रवृत्ति का विश्लेषण करने वाला था। सत्ता पक्ष अपने बहुमत के बलबूते विपक्ष को सदन में अपने विचार मर्यादित ढंग से प्रस्तुत नहीं करने देता। परेशान होकर विपक्ष सदन की कार्यवाही का बहिष्कार करता है। बहुत सारे विधेयक विपक्ष की अनुपस्थिति में पास हो जाते हैं और बजट भी बिना किसी बहस के पास हो जाता है।
हमें याद रखना चाहिए कि लोकतंत्र के लिए सत्ता पक्ष को तानाशाही के रास्ते पर जाने से रोकने के लिए सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। पर हमारे देश में सत्ता पक्ष चाहता है कि उसे चुनौती देने वाला विपक्ष न हो तो अच्छा है। यही कारण है कि अधिक संख्या वाला सत्ता पक्ष विपक्ष का मुंह बंद करवा देता है। सदन में सत्ता पक्ष तथा विपक्ष में हाथापाई हो जाती है, फाइलें फाड़ दी जाती हैं, एक-दूसरे पर माइक फेंके जाते हैं।
पिछले दिनों पश्चिम बंगाल विधानसभा में जिस तरह सत्ता पक्ष तथा विपक्ष के बीच सदन में हिंसक झड़पें हुई और जिस तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के घर के आगे प्रदर्शन तथा धरना दिया गया, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। बहुमत वाले सत्ता पक्ष का यह नैतिक कर्तव्य है कि सदन में विपक्ष का मान-सम्मान बढ़ाए, उसकी बातें सुनने की कोशिश करे। आरोप-प्रत्यारोप गरिमामय ढंग से होने चाहिए।
शाम लाल कौशल, रोहतक
असहमति के स्वर
भारत की दिग्गज महिला व्यवसायी किरण मजूमदार शा ने जो सवाल उठाया है, उसे आज हर उस व्यक्ति को उठाना चाहिए, जो देश के संविधान पर विश्वास रखता हो। उन्होने बिलकुल ठीक कहा है कि ‘कर्नाटक ने हमेशा समावेशी आर्थिक विकास किया है और हमें इस तरह के सांप्रदायिक बहिष्कार की अनुमति नहीं देनी चाहिए। अगर इंफार्मेशन टेक्नोलाजी और बिजनेस ट्रांसफार्मेशन को सांप्रदायिक रंग दिया गया तो यह हमारे वैश्विक नेतृत्व को खत्म कर देगा।’ देश और समाज को विभाजित देखने वालों को आज भले किरण मजूमदार के वक्तव्य में देशद्रोह की बू आ रही होगी, मगर यकीन मानिए, बंटवारे का यह सिलसिला अगर नहीं रोका गया तो देश को बर्बाद होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
जंग बहादुर सिंह, जमशेदपुर
जंगल में आग
जंगलों में आग लगने की घटनाएं चिंताजनक हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, ओड़ीशा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, छत्तीसगढ़ में हाल ही जंगलों में आग की घटनाएं हुई हैं। प्राकृतिक कारण जैसे तापमान बढ़ना, बरसात कम होना, सूखे पत्तों का बढ़ना और लोगों की लापरवाही जैसे शिकार के लिए आग जलाना, जलती बीड़ी-सिगरेट फेंकना आदि हो सकता है। इसके अलावा कुछ स्वार्थी भूमाफिया जगलों को तहस-नहस कर वहां व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने की फिराक में रहते हैं। यह उनकी भी करतूत हो सकती है।
जंगलों के विकास के लिए निरंतर उनके संरक्षण पर ध्यान केंद्रित रखना अत्यंत आवश्यक है। विकास के लिए हरे-भरे पेड़ों को काटना जितना आसान है उतना ही कठिन है पौधों को पेड़ बनाना। बरसों से जो पेड़ पर्यावरण को संतुलित रखने में सहयोग करते हैं उन्हें हजारों की तादाद में विकास के लिए निर्ममता से काट दिया जाता है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वृक्षारोपण या पौधारोपण ओपचारिक नहीं, बल्कि उसकी देखभाल भी जिम्मेदारी से की जाए। तभी वृक्षारोपण सफल भी होगा और लाभदायक भी। साथ ही पर्यावरण को संतुलित करने का सार्थक कदम भी।
शकुंतला महेश नेनावा, इंदौर</p>
