वृद्धावस्था जीवन का वह अहम पड़ाव है, जहां इंसान अपनों से सहारे की अपेक्षा कर बस प्रेम की आशा रखता है। लेकिन तब क्या होता है, जब यह आशा निराशा में तब्दील हो जाती है? वृद्ध व्यक्ति की इच्छाशक्ति और जीने की आस जवाब दे जाती है और उसे दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर होना पड़ता है। यही कारण है कि आज बड़े पैमाने पर वृद्ध या बुजुर्ग लोग वृद्धाश्रमों के सहारे ही अपना जीवनयापन कर रहे हैं। सवाल है कि आखिर हमारा समाज किन वजहों से जिम्मेदारियों से अपना पल्ला झाड़ रहा है?

अपनों से धोखा और उपेक्षित व्यवहार जैसे कई कारण स्पष्ट और सामने हैं। घर के बड़े-बुजुर्ग ही परिवार के मार्गदर्शक होते हैं। भावनाओं के संबल होते हैं। अगर इन्हीं का सम्मान नहीं किया जाए तो अंदाजा लगाना कतई मुश्किल नहीं कि परिवार का जीवन किस दिशा में जाएगा? यानी इनको सम्मान और सहारा देना अहम है। आज अगर वृद्धाश्रमों में वृद्धों की बढ़ती संख्या को रोकना है तो हमें अपने घरों से ही शुरुआत करने की जरूरत है। बड़ों को वक्त और सम्मान देना परिवारों का अहम कर्तव्य है।
’निखिल रस्तोगी, अंबाला कैंट, हरियाणा

तंगनजरी के खेल

दुबई में चल रहे क्रिकेट टी-20 विश्व कप में भारतीय टीम पाकिस्तान और न्यूजीलैंड से पराजित हो गई। बात केवल इतनी ही है कि एक मैच में वही टीम जीतती है जो सामने वाली टीम से बेहतर खेलती है। खेल में ‘खेल भावना’ बेहद अहम होती है और सभी खिलाड़ी अपने स्तर पर बेहतर खेलने का ही प्रयास करते हैं। इन बातों के बीच हमें कुछ विषयों पर जरूर मंथन करना चाहिए, मसलन, हम देश की टीम के खिलाडियों में ‘देशद्रोही’ कैसे और क्यों ढूंढ़ने लग जाते हैं?

हम उन्हें सपरिवार अपनी गंदी शब्दावली से क्यों ‘प्रताड़ित’ करते हैं? हमारे देश में दर्शक क्रिकेट के किसी एक मैच को ही ‘राष्ट्रीय अस्मिता का विषय’ क्यों बना देते हैं? इसके अलावा, हम खेलों में क्रिकेट को ही इतना अधिक महत्त्व क्यों देते हैं? हमें इन बातो पर गहन विश्लेषण की जरूरत है। खेल परस्पर जोड़ता है, न कि विभाजन पैदा करता है। हमें सभी खेलो के खिलाडियों को समान रूप से प्रोत्साहित करना होगा। हमें यह समझना होगा कि क्रिकेट एक खेल जरूर है, मगर एकमात्र नहीं।
’दिनेश चौधरी, सिरोही, राजस्थान</p>