भारत की अधिकतर जनता आज भी कृषि पर आधारित आर्थिक क्रियाओं पर निर्भर है। ऐसी परिस्थिति में व्यापक स्तर पर कल्याण के लिए आवश्यक है कि कृषि सुधार की दिशा में कार्य किया जाए। यों सरकार समय-समय पर किसानों के लिए योजनाएं लाती रहती है। रासायनिक खादों पर सबसिडी हो या कर्ज मुहैया करने जैसी सुविधा, किसानों को मिलती रहती है। इसके बावजूद हमारे किसान आत्महत्या करने पर विवश होते हैं। इसका कारण उनके द्वारा लगाई गई लागत के अनुरूप उत्पादन का नहीं मिलना है। इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं?

यह विरले ही देखने को मिलता है कि कृषि अधिकारी किसानों के सहायक के तौर पर कभी खेत में उपस्थित हो। भारतीय कृषि में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से न केवल भूमि का निम्नीकरण हो रहा है, बल्कि किसानों की जेब पर भी बोझ बढ़ा है। इससे लोगों की सेहत पर कितना घातक असर पड़ा है, यह अब कोई छिपा तथ्य नहीं रह गया है।

आधुनिक सामग्री का उपयोग अत्यंत प्रबंधित विधि से होना चाहिए, जिसमें किसानों के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी संबंधित कृषि अधिकारी की होनी चाहिए।

इसे किसानों का दुर्भाग्य कहें या सरकारों की असंवेदनशीलता, हानि का शिकार आखिर किसान ही होते हैं। अभी भी समय है कि अगर भूमि निम्नीकरण और किसानों पर बढ़ते बोझ को कम करना है तो कृषि अधिकारियों को उनके दायित्वों के प्रति अधिक सजग और निष्ठावान बनाया जाए। शायद इससे भारतीय किसान के चेहरे पर मुस्कान लौट आए और भारतीय कृषि की तस्वीर बदल जाए!