महंगाई ने मध्यम और निम्न वर्ग की कमर तोड़ कर रख दी है। उच्च वर्ग का महंगाई से कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि उसके पास इतना पैसा है कि उसे महंगाई से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों का तो जीना मुहाल हो रखा है। लोग महंगाई की चर्चा करते जरूर हैं, पर उससे निपटने के उपाय तो उनके हाथ में हैं नहीं। इसलिए बेबस होकर इसे झलने के अलावा कोई चारा भी नहीं है। इस वक्त ज्यादा मुश्किल इसलिए है क्योंकि कोरोना की वजह से व्यापार में मंदी आई हुई है और लोगों के पास कामधंधा भी नहीं है। जिन लोगों की नौकरियां बची हैं उनके वेतन में भी काफी कमी आ गई है।
ऐसे में इन लोगों के लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया। कपड़े, जूते या दूसरे सामान ना भी खरीदें, परंतु पेट भरने के लिए राशन तो खरीदना ही पड़ता है। पिछले कुछ दिनों में खाने-पीने के सामान में भारी बढ़ोतरी हुई है। दूध से लेकर रसोई गैस, पेट्रो, डीजल तक के दाम आसमान छू रहे हैं। इससे लोगों का बजट बुरी तरह गड़बड़ा गया है। महंगाई को लेकर विपक्ष धरने प्रदर्शन करता है, लेकिन वही विपक्ष जब सत्ता में आता है तो सब कुछ भूल कर महंगाई के साथ खड़ा हो जाता है। हैरानी की बात तो यह कि इस बार विपक्ष ने महंगाई को लेकर ऐसा कोई बड़ा आंदोलन करने की भी हिम्मत नहीं दिखाई जिससे सरकार की नींद उड़े।
’चरनजीत अरोड़ा, नरेला, दिल्ली</p>
आबादी का सवाल
एक ओर चीन भूल सुधार कर रहा है। दूसरी तरफ हमारे देश का राष्ट्रवादी तबका जल्द से जल्द नई जनसंख्या नीति चाहता है, ताकि बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाया जा सके। दोनों देशों में फर्क सिर्फ इतना है कि चीन के नेतृत्त्व ने 1979 में एक संतान नीति यह सोच कर लागू की थी ताकि देश के संसाधनों पर दबाव कम पड़े। हमारे यहां यह मांग शुद्ध रूप से राजनीतिक ध्रुवीकरण के एवज में की जा रही है। कुछ ही वर्षों के बाद चीन को गलती का अहसास हुआ और उसने दो बच्चों की छूट दी। उससे भी देश में युवा शक्ति में वृद्धि न होता देख कर चीनी शासन ने हाल में तीन बच्चों वाली नई नीति का ऐलान कर दिया, जिसमें बच्चो की परवरिश से लेकर शिक्षा-दीक्षा तक का खर्च का बोझ सरकार उठाएगी। चीन में आज हालत यह है कि वृद्धों की संख्या बढ़ रही है। मगर कामयोग्य नई पीढ़ी की संख्या तेजी से गिरती जा रही है।
’जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर