विगत कुछ दिनों से आम जनता कमरतोड़ महंगाई की मार से त्रस्त है। नवंबर माह से पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की वजह से पेट्रोलियम प्रदार्थों को कीमतें स्थिर बनी हुई थीं, लेकिन यूक्रेन युद्ध की वजह से कच्चे तेल की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है। सरकार द्वारा एक ही बार में थोक डीजल की कीमतों में पच्चीस रुपए प्रति लीटर की बढोतरी करना हैरानी भरा है। वस्तुओं के आवागमन के लिए सड़क मार्ग का इस्तेमाल अधिक किया जाता है। डीजल में कीमतों की बढ़ोतरी का असर अन्य सभी वस्तुओं की कीमतों पर पड़ता है। अब डीजल और पेट्रोल की खुदरा कीमतों में भी बढोतरी का सिलसिला प्रांरभ हो चुका है। रसोई गैस की कीमत में पचास रुपए का इजाफा होने से महिलाएं परेशान हैं।

सरकार को आम जनता को महंगाई से राहत पहुंचाने का मार्ग तलाशना चाहिए। कोरोना महामारी की वजह से करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन गई है। आम लोगों की आय में कमी आई है। इन परिस्थितियों में आम जनता का आय और खर्च का संतुलन बिगड़ चुका है। भोजन, दवाई, वस्त्र और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतों में बढोतरी से आम लोग परेशान हैं। सरकार को अर्थव्यवस्था की मजबूती और महंगाई नियंत्रण के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।
हिमांशु शेखर, केसपा, गया

नफरत के बीज

देश के संविधान की प्रस्तावना में एक शब्द है, जो आज विलुप्त होने की कगार पर है। बड़े जोर-शोर से इसे विलुप्त करार देने की कोशिशें जारी हैं। यह शब्द है ‘धर्मनिरपेक्ष’। अंग्रेजी में ‘सेक्युलर’। आज अगर आप धर्मनिरपेक्ष देश का सपना देखते हैं, तो आपको हंसी के पात्र के अलावा कुछ नहीं समझा जाएगा। आज देश में छोटे से छोटा मुद्दा भी धर्म और समुदायों के बीच फंस कर इतना जहरीला रूप धारण कर लेता है कि लोगों की जान पर बन आती है। चाहे वह कोई फिल्म हो, जमीन हो, हक हो, शैक्षणिक संस्थान हो, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च हो, यहां तक कि कोई इंसान ही क्यों न हो, कोई फर्क नहीं पड़ता।

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे से लेकर खटिया पर पड़े अपनी आखिरी सांसें गिनते बुजुर्ग, सभी के मन में दूसरे इंसान के प्रति इतना जहर पनप रहा है कि अपने जीवन को छोड़ वे इन तुच्छ बातों में अपने आप को फंसाए हुए हैं। भारत अनेकता में एकता का प्रतीक माना जाता है। ऐसा देश, जहां न जाने कितने धर्मों के लोग साथ में हंसी-खुशी रहते थे, अनेकता थी, लेकिन सभी एकजुट होकर एकता को बढ़ावा देते थे। आज वे लोग दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ते, या शायद उन्हें भी चुप करा दिया गया है।
राखी पेशवानी, भोपाल</p>