केंद्र सरकार सेवा कर के नाम पर जनता को लूट रही है। चौदह प्रतिशत सेवा कर पहले ही बहुत ज्यादा था पर उसे अब आधा-आधा प्रतिशत दो बार किसी न किसी नाम से बढ़ा कर पंद्रह प्रतिशत कर दिया गया है। यह जनता के साथ धोखा है। दिन-पर-दिन तमाम सेवाएं इस कर के दायरे में आती जा रही हैं। गौरतलब है कि सेवा कर की दोहरी मार सबसे ज्यादा आयकरदाताओं पर ही पड़ती है क्योंकि वही सेवाओं का उपयोग ज्यादा करते हैं। यदि सरकार को अपनी आय बढ़ानी ही है तो क्यों नहीं लाती अधिक से अधिक लोगों को आयकर वसूली के दायरे में? कहां जा रहा है कोयला, दूरसंचार, तेल और गैस का लाभ? क्यों की जा रही है विज्ञापनों पर अंधाधुंध पैसे की बरबादी? क्या जनता मेहनत करके धन इसलिए कमाती है कि उसका एक बड़ा भाग बरबादी के लिए सरकार को दे?

(यश वीर आर्य, दिल्ली)