एक बात समझ में नहीं आती है कि बेटी को पैदा करना लोगों ने अपराध की तरह मानना क्यों शुरू कर दिया! क्या लोग यह स्वीकार करेंगे कि सचमुच बेटियों की समाज में मान-सम्मान नहीं है?

आखिर क्यों बेटियों को अलग नजरिए से देखना शुरू कर देते हैं? क्यों किसी समाज में लड़का पैदा होता है तो जश्न मनाया जाता है और बेटी पैदा होती है तो अंधेरा छा जाने के जैसा माहौल खड़ा हो जाता है? एक ओर देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के नारे लगाए जाते हैं, वहीं देश में बेटियों को लेकर समाज में गलतफहमियां बढ़ती ही जा रही दिखती हैं।

क्यों लड़कों के जैसा ही बेटियों को आधुनिकता और तकनीकी की इस दुनिया में एक ही नजरिए से नहीं देखा जा रहा है? हमारे समाज में कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो जब बेटी पैदा होते हैं तो मुंह मोड़ लेते हैं और बेटा पैदा होते हैं तो पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटते हैं। लेकिन इसका कारण यह है कि लड़के ही अपने मां-बाप को बुढ़ापे में हाथ बताएंगे, लड़कियां नहीं? आखिर क्यों आज की तारीख में समाज में बेटियों को लेकर अलग नजरिया देखने को मिल रहे हैं?

विज्ञान की इस दुनिया में आज देश में जितनी भी बेटियां हैं, उन्होंने ही लड़कों से ज्यादा नाम कमाया है। आज की बेटियां हवाई जहाज से लेकर अंतरिक्ष विज्ञानी तक काम कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर देश की कुछ लड़के, इतनी आगे अभी तक नहीं बढ़ पा रहे हैं ’ वास्तव में समाज में जागरूकता का अभियान होना बहुत ही जल्दी है क्योंकि हमारे देश के कई समाज में हमें भी बेटियों को लेकर गलतफहमियां अभी भी दूर नहीं हुई है और जिसकी वजह से शायद आने वाले दिनों में बेटियों को लेकर समाज में भयानक रूप से विवाद बढ़ने की आशंका है’।

इसलिए उसी समय रहते ही भारत सरकार के साथ हाथ मिला कर हम सभी लोगों को बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने में जितनी हो सके मदद करना चाहिए, क्योंकि इससे भारत में महिलाओं के मान-सम्मान और एकता अंतराष्ट्रीय पर्याय में सबको देखने और सीखने को मिलेगी। भारत एक महिला प्रधान देश है और यहां पर महिलाओं को देवी के जैसा ही पूजा किया जाता है। जिस देश में महिलाओं को सम्मान नहीं दिया जाता है, वह देश और समाज की वास्तव में विकास नहीं करेगा।
’चंदन कुमार नाथ, गुवाहाटी, असम</p>

मायूसी का बजट

सबने यह कहावत सुनी ही होगी और चरितार्थ भी किया होगा कि कथनी अलग, करनी अलग। भारत के नए दशक का बजट यही दर्शाता है कि किस तरीके से केंद्र की सरकार ने अपनी करनी और कथनी में साफ अंतर कर करके जनता के सामने पेश हो रही है। आइडीबीआइ समेत दो और बैंक निजीकरण की नदी में विसर्जन होने को है। क्या भारत अब किसानों का नहीं, बल्कि कॉरपोरेटों का देश माना जाएगा? क्या ईमानदार करदाता को सिर्फ शब्द सुन कर ही गुजारा करना पड़ेगा? जिनकी आमदनी पूर्णबंदी के अंधकार में भी पैंतीस फीसद बढ़ गई, उन्हें टैक्स में भारी छूट देकर आखिर कब तक आम आदमी पर कुल्हाड़ी चलाया जाता रहेगा?

ऐसा लगता है कि किसी ने सच ही कहा है कि कानून और कर अमीरों के लिए नहीं, बल्कि गरीबों के लिए है। लघु और मध्यम व्यापारियों को जिस तरीके से दरकिनार किया गया है, वह सरकार की मंशा को भली-भांति स्पष्ट करता है। गरीब, बेसहारा, युवा और व्यापारियों को उम्मीद थी कि सरकार उनके हित में अच्छे कदम उठाएगी। प्रधानमंत्री ने जो वादा किया है, रैलियों और जन संबोधन में, उस पर अमल होगा और बजट के माध्यम से राहत दी जाएगी। लेकिन सरकार ने लगता है अपना मन-मिजाज बना लिया है।

हाल में ये दावे खूब प्रचारित हुए कि देश में कुछ बिकने की नौबत नहीं आएगी। लेकिन दावे और अमल में फर्क साफ नजर आ रहा है। युवाओं का झोला अभी भी खाली है। डिजिटल बजट तो संसद के पटल पर रख दिया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर क्या असर सामने आएगा, यह समय ही बताएगा। उम्मीद थी कि यह बजट गरीबों का होगा, लेकिन यह अब अमीरों का है। निजीकरण तो किया ही जा रहा, लेकिन देश के ऊपर जो कर्ज और दबाव है, वह कम होने के बजाय बढ़ रहा है।
’अमन जायसवाल, दिल्ली विवि, दिल्ली

तिब्बत की अहमियत

चीन और भारत दोनों की सुरक्षा के लिए तिब्बत एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। वर्ष 1950 तक तिब्बत एक स्वतंत्र देश था। चीन ने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत तिब्बत पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया। तिब्बत के कब्जे के बाद चीन की सीमा भारत से जुड़ गई और भारत-चीन सीमा विवाद प्रांरभ हो गया। पचास के दशक में अमेरिका ने तिब्बत की आजादी का प्रयास किया था, लेकिन भारत से सहयोग नहीं मिलने के कारण उनका प्रयास विफल हो गया। उसके बाद अमेरिका एक कार्ड की तरह तिब्बत का प्रयोग करता रहा।

चीन की कमजोर कड़ी तिब्बत है, इसलिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के विरोध के बावजूद अपनी विदाई से पहले रेसीप्रोकल एक्सप्रेस टू तिब्बत एक्ट, 2018 को कानूनी तौर पर अमलीजामा पहना दिया। इस कानून के तहत अमेरिकी राजनयिकों, पत्रकारों एवं अन्य लोगों के लिए तिब्बत जाने का मार्ग प्रशस्त हो गया। तिब्बत पूरे दक्षिण एशिया के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है। भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान तिब्बत की आजादी में छिपा हुआ है। भारत को अमेरिका सहित अन्य देशों को भी चीन के विरुद्ध एकजुट करना चाहिए।
’हिमांशु शेखर, केसपा, गया, बिहार

संवेदनहीनता की अति

हाड़ कंपा देने वाली कड़ाके की ठंड में लोगों को घरों में भी ठंड से बचने का उपाय करना पड़ता है। लेकिन सफाई के मामले में देश में मिसाल बने इंदौर नगर निगम के कर्मचारियों द्वारा बेसहारा, बेबस,लाचार बुजुर्गों के साथ जैसा बर्ताव किया गया, इस घटना ने मन को झकझोर दिया। कैसे संभव हो पाया कि बुजुर्गों को गाड़ी में भर कर शहर के बाहर छोड़ दिया गया। इसमें कुछ लाचार बुजुर्ग तो बिना सहारे के चल भी नहीं पा रहे थे। सरकार के संबंधित महकमे के अधिकारियों और कर्मचारियों ने इस घटना ने मानवता को शर्मसार कर दिया।
’पूनम चंद सिर्वी, कुक्षी, मप्र