इन दोनों संगठनों ने विश्व अर्थव्यवस्था के और बेकाबू होने की चेतावनी दी है! भारत में भी जीडीपी का कम आकलन किया है। कोरोना काल के लगभग खत्म होने के बाद जो आशा की जाती थी कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी, सरकार के द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद भी पहले वाली बात नहीं बनी।
देश में छोटे, मंझले तथा ग्रामीण डोरेमोन उद्योग लगभग बंद पड़े हैं। देसी तथा विदेशी निवेश में उत्साह देखने को नहीं मिलता। देश के विदेशी मुद्रा भंडारों में कमी आ रही है, डालर के मुकाबले में भारतीय रुपया लगातार लुढ़कता जा रहा है और एक डालर की कीमत 82 रुपए के आसपास हो गई है।
इस सब के फलस्वरूप विदेशों से तेल, पेट्रोल, गैस, खाद, कोयला, दवाओं के लिए रसायन आदि के आयात पर खर्च बढ़ जाएगा। देश में पहले ही बेरोजगारी, आमदनी में कमी और महंगाई के कारण अर्थव्यवस्था रेंग-रेंग कर चल रही है और ऊपर से आइएमएफ और आइटीओ ने और मंदी की चेतावनी दे दी है। इसका मतलब यह है कि सरकार को अर्थव्यवस्था को संभालने और उबारने के लिए विशेष उपाय करने होंगे।
अभी तक इस संदर्भ में उठाए गए कदम काफी नहीं है। सरकार को रोजगार बढ़ावा देने वाली नीतियां अपनाकर, करों में कमी करके क्रय शक्ति बढ़ानी होगी और मांग को भी बढ़ाना होगा। तभी जाकर उनके बढ़ने से मंदी का मुकाबला किया जा सकेगा।
शाम लाल कौशल, रोहतक
बिन मौसम
पिछले दिनों जिस तरह बेमौसम बारिश हुई, उसने लोगों के नियोजित उद्देश्यों पर पानी फेर दिया है। उत्तर प्रदेश में किसानों को भारी नुकसान हुआ है। धान की फसल बड़ी मात्रा नष्ट हो गई है। दूसरी ओर बड़े-बड़े महानगरों में त्योहारों में शहरी लोगों को मनोरंजन और दूसरी कारोबारी गतिविधियों से दूर रहना पड़ा। लोगों को काम पर जाना या काम से वापस आने में घंटों जाम में फंसे रहना पड़ता है और लोग समय से घर या कार्यालय नहीं पहुंच पाते हैं।
दरअसल, यह मौसम बरसात का नहीं, बल्कि ठंड की शुरुआत का है, लेकिन मानसून में ठीक से बरसात न होने के कारण लगता है, उसकी कमी प्रकृति ने पूरी की, लेकिन उसका फायदा तो नहीं हुआ, उल्टे नुकसान बहुत ज्यादा हो गया।
शाहिद हाशमी, जामिया नगर, नई दिल्ली</p>