हाल के दिनों में कई राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण के उपाय कर रहे हैं। कुछ का कहना है कि ये उपाय एक विशेष समुदाय के खिलाफ हैं। जबकि कुछ का कहना है कि चीन की गलतियों से सबक लेना चाहिए और इस दिशा में जल्द ही कदम उटाना चाहिए ताकि बढ़ती आबादी पर काबू पा सकें। पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ती आबादी बड़ी समस्या के रूप में सामने आई है। समस्या इसलिए ज्यादा विकराल है क्योंकि बढ़ती आबादी के हिसाब से पानी, भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचा नहीं है।

अस्सी के दशक में चीन ने एक बच्चे की नीति पेश की थी। उसके नकारात्मक असर अब दिखाई दे रहे हैं और उन्हें अपना जनसंख्या नियंत्रण मॉडल बदलना पड़ा। भारतीय परिप्रेक्ष्य में राज्यों का कहना है कि ज्यादातर भारतीयों ने “हम दो हमारे दो” के नारे को अपनाया। इस बीच हमें उन सभी अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संगठनों को याद रखना होगा जो जनसंख्या में वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं की चेतावनी देते हैं। जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए या तो गर्भनिरोधक उपायों को सक्रिय रूप से उपयोग में लेना होगा या सरकार को आप पर नीति लागू करनी होगी और जनसंख्या को कम करने का दूसरा तरीका है देश को विकसित करना। सरकार की नीतियों की आलोचनात्मक रूप से जांच की जा सकती है और साथ में इसके फायदे और नुकसान को भी समझना होगा। यह किसी एक समुदाय को अनैतिक लग सकता है, लेकिन मानव समुदाय के लिए फायदेमंद हो सकता है। वरना बढ़ती आबादी भारत को युवा देश से वृद्धों का देश बना सकती है। बहरहाल इस तरह की नीतियों की समय समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।
’कनाल देव, दिल्ली</p>

पेटेंट का मुद्दा

इस वक्त हर कोई वैश्विक महामारी से परेशान हैं। महामारी ने देश-दुनिया की हर व्यवस्था को तबाह कर दिया है। भारत में तबाही और बबार्दी कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर हुई है। छोटे-बड़े उद्योगों से लेकर हर तबके के लोग इससे प्रभावित हुए हैं। सामाजिक स्तर पर देखें तो महामारी को लेकर भय का माहौल व्याप्त है। लोग एक दूसरे से मिलने में भी घबराने लगे हैं। हालांकि अब देश में संक्रमित मरीजों की संख्या में काफी कमी आ गई है। फिर भी तीसरी लहर के खतरों को लेकर सरकारों और लोगों की चिंताएं बढ़ रही है। अब डेल्टा प्लस विषाणु का कहर शुरू हो गया है। लोगों को आशंका है कि इससे तीसरी लहर कहीं ज्यादा खतरनाक होगी।

इसलिए अब वक्त की जरूरत है कि हम वैश्विक स्तर पर पेटेंट कानूनों के प्रावधानों में छूट की वकालत करना प्रारंभ करें। अगर ऐसा नहीं होगा तो कई देशों के समक्ष मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इसलिए पेटेंट कानून के प्रावधानों में छूट की जरूरत दिखाई देती है। हम इस विपरीत परिस्थिति में बौद्धिक कानूनों के आधार पर पेटेंट की महत्ता को बहुत मजबूती से लागू नहीं करा सकते हैं, क्योंकि यहां जनमानस के स्वास्थ्य और व्यक्तिगत जीवन का सवाल है। इस स्थिति में पेटेंट को एक मानक मान कर काम करने से बड़ी संख्या में लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है, जो वैश्विक स्तर पर किसी को स्वीकार्य नहीं हो सकती है।

पूरा विश्व भी जानता है कि जितने भी वैज्ञानिक शोध हुए हैं और उनके द्वारा जो वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल की गई है, उसके पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य जनहित का कल्याण करना ही रहा है। इन वैज्ञानिकों के द्वारा दिए गए उपहार को एक छोटे से कानून के बंधन में बांध कर नहीं रख सकते हैं। उन वैज्ञानिकों का यह उद्वेश्य भी कभी यह नहीं रहा था कि इसका प्रयोग और उपयोग अपनी पूंजी बढ़ाने में किया जाए। इसलिए वैश्विक स्तर पर मिलजुल कर पेटेंट के बिंदु पर गंभीरता से निर्णय लेते हुए बौद्धिक कानूनों के प्रावधानों में छूट की वकालत करनी होगी। तभी हम इस महामारी से जनमानस को सुरक्षित रखने में सफल हो सकते हैं। अगर हम ऐसा कर पाएंगे तो सही समय पर सही एवं प्रतिष्ठित कंपनी के यहां निर्मित टीके आसानी उपलब्ध हो पाएंगे।
’अशोक, पटना</p>

नया खतरा

महामारी ने अभी तक किसी प्रकार की ढील नहीं छोड़ी। जहां एक ओर मामले कम हुए, वहीं दूसरी ओर विषाणु के नए रूपों से संक्रमण तेजी से फैल रहा है। इसीलिए विशेषज्ञों ने डेल्टा प्लस को चिंताजनक श्रेणी में रखा है। चूंकि इसके फैलने की तीव्रता और नुकसान पहुंचाने की क्षमता काफी ज्यादा है, इसलिए खतरा कहीं ज्यादा बड़ा है। फिलहाल डेल्टा प्लस पर शोध चल रहा है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि भारत या अन्य देशों में जो टीके बने हैं वे इसके खिलाफ कितने कारगर हैं। ऐसे में टीकों के प्रभाव को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि टीका काफी हद तक बचाव करेगा। भारत में भी मुंबई सहित कई शहरों में डेल्टा प्लस के मरीज मिले हैं। कई देश तो फिर से पूर्णबंदी की ओर लौटे रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर सरकार और समाज को सतर्क होने की जरूरत है। सावधान और सजग रह कर ही हम पूर्णबंदी से बच सकते हैं।
’अमन जायसवाल, दिल्ली विवि, दिल्ली

लक्ष्य आसान नहीं

केंद्र सरकार अभी भी टीकाकरण के अपने लक्ष्य पर टिकी हुई है। हाल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दर्ज करके बताया कि साल के अंत तक भारत की कुल आबादी का टीकाकरण हो जाएगा। सुकून और उम्मीद देने वाली खबर यह है कि बीते छह दिनों के दौरान देश में टीकाकरण की रफ्तार तेज हुई है। 21 जून को देश में छियासी लाख टीके लगाए गए, जो भारत में एक दिन में लगाए गए टीकों का सबसे बड़ा आंकड़ा है। हालांकि इसके बाद टीकाकरण का ग्राफ गिरता जा रहा है। सवाल ये उठता है की आखिर सरकार 31 दिसंबर तक संपूर्ण वयस्क आबादी का टीकाकरण कैसे करेगी? भारत की वयस्क आबादी चौरानवे करोड़ है और इस आबादी के लिए दो खुराक के हिसाब से एक सौ अट्ठासी करोड़ टीकों की आवश्यकता है। हालिया स्थिति की बात करें तो 26 जून तक अभी मात्र बत्तीस करोड़ सत्रह? लाख टीके ही लग पाए हैं। जबकि अभी एक सौ छप्पन करोड़ टीके लगना बाकी है।
’रितिक सविता, दिल्ली विवि, दिल्ली