‘भुखमरी का आईना’ (संपादकीय, 18 नवंबर) पढ़ा। भूख पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने अनुच्छेद 47 के साथ अन्य कर्तव्यों एक बार फिर से केंद्र और राज्यों याद दिलाया। लोगों का स्वास्थ्य एक ऐसी नब्ज है जो किसी देश का भविष्य बताने के लिए पर्याप्त है। यह तय है कि भूखी कोख भुखमरी को ही जन्म देगी और आगे की पीढ़ी को विरासत में शारीरिक और मानसिक अक्षमताओं के साथ मिली बीमारी, बेरोजगारी, गरीबी आदि आगे की कोख को फिर से भूखी कर देगी। सरल शब्दों में यों कहें कि कुपोषण समाज में धीमे जहर की तरह कार्य करता है।

अपवादस्वरूप कृषि पिछले कई वर्षों की तरह इस वर्ष भी भारत का कुल खाद्यान्न उत्पादन 303 मिलियन टन रहा। यह निर्धारित लक्ष्य से इस वर्ष भी अधिक है। इसके अलावा,खाद्यान्न निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में रुपए के लिहाज से 22.62 फीसद अधिक रहा है। निराशा तब हुई जब इस वर्ष प्रकाशित वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत 116 देशों की सूची में आखिरी पंद्रहवां स्थान प्राप्त कर अपने पड़ोसी बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों से भी बदतर स्थिति में रहा। ऐसा लगता है मानो अच्छे भोजनालय का मालिक भूख से कराह रहा हो।

हमारे देश में अधिकतर महिलाओं में खून की कमी कुपोषण की तीव्रता को दिखाती है, जिसके चलते जन्म लेने वाले बच्चों में अल्पपोषण, बाल मृत्यु की बढ़ती दर को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। दरअसल, गर्भवती महिलाओं की कोख में ही भूख और कुपोषण रूपी स्याही से बच्चों साथ देश का भी भविष्य लिखा जा रहा है। यों समस्या से निजात पाने के लिए अनेक प्रयास किए गए और जारी भी हैं, मसलन मातृत्व वंदना योजना आदि।

यह ध्यान देने योग्य है कि ऊर्जा प्रदाता पोषक तत्त्व (कार्बोहाइड्रेट और वसा) की कमी कुपोषण को जन्म देती है। इन तत्त्वों के पर्याप्त होने के बावजूद शरीर निर्माण में सहायक तत्त्व (यथा प्रोटीन आदि) और सूक्ष्मपोषणीय तत्त्व की कमी का परिणाम भी कुपोषण है। इस प्रकार सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद पौष्टिक भोजन तो दूर, पेट भरने की जद्दोजहद पूरी करना ही कठिन हुआ। इसके चलते बच्चों में मैरेस्मस, हाइपोग्लाइसिमीया, क्वाशीअकार जैसी बीमारियां आम हो चलीं।

कोरोनावायरस के लंबे समय में सबसे ज्यादा अगर कोई प्रभावित हुआ, तो वह हैं सरकारी स्कूल के बच्चे। अगर समय रहते उचित प्रयास नहीं किए गए तो बच्चों की बीच में ही पढ़ाई झोड़ने की समस्या विकराल रूप लेगी ही, मध्याह्न भोजन की वंचना कुपोषण की तीव्रता को और बढ़ा सकती है। लिंग भेद एवं बाल विवाह जैसी कुरीतियों को भी कुपोषण के एक कारण के रूप में देखा जा सकता है।

शून्य भुखमरी का लक्ष्य 2030 तक प्राप्त करना थोड़ा मुश्किल लगता है, लेकिन भारत पोलियो जैसी समस्या से मुक्ति पा सकता है तो इस लक्ष्य को प्राप्त करना भी असंभव नहीं, बशर्ते इसे लोक नीतियों का मुख्य एजंडा बनाया जाए। ‘पोषण मिशन’ जैसी भूख और कुपोषण दूर करने से जुड़ी समस्याओं को दूर करने वाली सभी योजनाओं पर ईमानदारी से अमल की जरूरत है।
’मोहम्मद जुबैर, कानपुर, उत्तर प्रदेश