वर्ष 2022-23 में धान किसानों को कम दाम मिलने से एक लाख बीस हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान गलत सरकारी नीतियों के कारण हुआ। सदियों से अन्नदाता का शोषण सामंती शासकीय व्यवस्था करती रही है। मगर आजाद भारत की लोकतंत्र व्यवस्था में, सरकार द्वारा उन किसानों का शोषण करना गंभीर विषय है, जिन्होंने बढ़ती आबादी के बावजूद, हरित क्रांति से उन्नत बीज और महंगी तकनीक अपना कर देश को लगातार आत्मनिर्भर बनाए रखा। इन महंगी उन्नत तकनीक से बढ़ी कृषि लागत की भरपाई के लिए, सरकार ने 1966 में फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति को मंजूर किया। तबसे भारत में वैधानिक तौर पर केंद्र सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य न्यायोचित उपयुक्त मूल्य नहीं बन पाया है, जो फसल बिक्री पर प्रत्येक किसान को मिलना ही चाहिए।

मगर साहूकार बिचौलियों की हितैषी केंद्र सरकार ने पिछले 57 वर्षों में अपने ही द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटी कानून न बनाकर, कभी भी निजी व्यापरियों पर लागू नहीं किया और उन्हें कृषि उपज मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर, फसल उपज खरीद की अनुमति देकर किसानों का खुला शोषण होने दिया। उससे भी आगे, स्वामिनाथन राष्ट्रीय कृषि आयोग-2006 की सिफारिशों- ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना संपूर्ण सी-2 लागत 50 फीसद लाभ पर होनी चाहिए’ को न लागू करके, केंद्र सरकार स्वयं भी किसानों का शोषण कर रही है।

भारत सरकार की अधिसूचना के अनुसार, वर्ष 2022-23 में देश में धान का कुल 130 करोड़ कुंतल उत्पादन हुआ, जिसमें से, 11.3 करोड़ किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य 2040 रुपए प्रति कुंतल पर, सरकार ने 62 करोड़ कुंतल धान की खरीद लगभग एक लाख साठ हजार करोड़ में खरीदा, यानि सरकार ने स्वामीनाथन आयोग द्वारा सिफारिश की गई एमएसपी 2710 रुपए प्रति कुंतल (सी-2 लागत 1805 रुपए और 50 फीसद लाभ) पर खरीद न करके किसानों का लगभग 42,000 करोड़ रुपए का शोषण किया।

इतना ही नहीं, सरकार ने पिछले पैंसठ वर्षों से एमएसपी गारंटी कानून न बनाकर, अपने साहूकार मित्रों, बिचौलियों को भी किसानों को लूटने की खुली छूट दे रखी है, जिन्होंने बाकी बचे 68 करोड़ कुंतल धान में से लगभग 60 करोड़ कुंतलधान को घोषित एमएसपी से 30 फीसद कम दाम, औसतन 1400 रुपए प्रति कुंतल पर खरीद कर किसानों का लगभग 78,000 करोड़ रुपए का शोषण किया।

इसी तरह सरकार ने रबी मौसम 2022-23 में, गेहंू के कुल अनुमानित उत्पादन 111 करोड़ कुंतल मे से 27 करोड़ कुंतल 2125 रुपए प्रति कुंतल एमएसपी दाम पर किसानों से खरीदा, जबकि सी-2 लागत 1575 रुपए और 50 फीसद लाभ पर गेहंू का दाम 2365 रुपए बनता था। मगर सरकार ने किसानों को 240 रुपए प्रति कुंतल कम दाम देकर लगभग 6500 करोड़ रुपए का शोषण किया और सरकार के साहूकार मित्रों ने बाकी बचे 84 करोड़ कुंतलमें से लगभग 70 करोड़ कुंतल गेहूं एमएसपी से कम दाम (औसत दाम 1700 रुपए) पर खरीद कर लगभग 46,000 करोड़ रुपए किसानों का शोषण किया। इस तरह पिछले एक साल में मात्र दो फसलों- धान और गेहंू की खरीद से सरकार ने लगभग 50,000 करोड़ और उसके साहूकार मित्रों, बिचौलियों ने 1,24,000 करोड़ रुपए का शोषण किया।

उचित दाम न मिलने से देश में उगाई जा रही 70 से ज्यादा फसलों (अनाज, तिलहन, दलहन, सब्जियो, फलों आदि) के विपणन पर, भारतीय किसानों का लगभग 25 लाख करोड़ रुपए वार्षिक का शोषण होता है, जो लगभग दो लाख रुपए प्रति किसान वार्षिक शोषण बनता है। यानि गलत सरकारी नीतियों के कारण किसानों का लगातार शोषण हो रहा है, जिससे किसान दिन प्रतिदिन गरीब-कर्जदार बनते जा रहे हैं और आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं। किसानों का शोषण करने वाली गलत सरकारी नीतियों को लगातार जारी रखते हुए, सरकार ने वर्ष 2023-24 खरीफ मौसम की फसलों के लिए, फिर से न्यूनतम समर्थन मूल्य संपूर्ण/व्यापक लागत पर घोषित नहीं की है।
वीरेंद्र सिंह लाठर, जीटी रोड, करनाल।

चीन की चाल

संपादकीय ‘चीन का अड़ंगा’ में उल्लेख है कि मुंबई में 26-11 के हमले में लश्कर-ए-तैयबा के साजिद मीर का नाम प्रमुख है। मीर के नाम की अदालती पुष्टि और अमेरिका की प्रमुख गवाही के आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सभा में अमेरिका और भारत द्वारा साजिद मीर को वैश्विक आतंकी नामित करने पर चीन ने वीटो पावर के उपयोग से अड़ंगा डाला, तो मीर को वैश्विक आतंकी घोषित नहीं किया जा सका। उल्लेखनीय है कि यह सब पाक के इशारे पर हो रहा है, जो पाक से ज्यादा चीन को भी महंगा पड़ेगा, क्योंकि आतंकी किसी के नहीं होते।
बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, उज्जैन।

सबका साथ

विपक्षी दलों और भाजपा की कवायद को देखते हुए लोकसभा 2024 के चुनाव में मुसलिम मतदाताओं पर सभी की निगाहें होंगी। भाजपा ने 22 जून से उत्तर प्रदेश के इस्लामिक शिक्षा केंद्र देवबंद से मुसलमानों को भाजपा से जोड़ने के लिए ‘मोदी मित्र’ कार्य योजना पर कार्य करना शुरू कर दिया है। इस योजना के तहत देश भर की 65 लोकसभा सीटों से करीब 3.50 लाख मुसलिमों को भाजपा से जोड़ा जाएगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े राष्ट्रीय मुसलिम मंच भी समान नागरिक संहिता के समर्थन के लिए मुसलिम समाज को तैयार किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में भी भाजपा ने करीब 350 मुसलिम पार्षदों को टिकट दिया था, जिसमें से 75 को जिताने में कामयाब रही थी और नगर पालिका तथा नगर पंचायत में भी भाजपा के मुसलिम प्रत्याशियों ने अध्यक्ष पद का चुनाव जीता था।

दरअसल, कर्नाटक चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा की समझ में आ चुका है कि मुसलिम समाज को भी साथ लेने से 2024 की राह आसान होगी। यह स्पष्ट है कि भाजपा का यह राजनीतिक दांव है, सबका साथ सबका विश्वास के सिद्धांत पर मुसलमानों को जोड़ रही है। भाजपा की यह रणनीति कितनी कामयाब होती है और कितना समर्थन भाजपा को मिलता है यह वक्त बताएगा, लेकिन मुसलिम बहुलता वाले लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में विपक्ष की अग्निपरीक्षा होगी।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली।