इसके तहत अभी तेईस फसलों की खरीद की जा रही है। इन फसलों में धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, तिल और कपास जैसी फसलें शामिल हैं। फिलहाल देश में केवल छह फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता है, जिनमें से सबसे ज्यादा किसान पंजाब व हरियाणा के हैं। एमएसपी को लेकर किसानों की चिंता के पीछे कुछ वजहें हैं।

सरकार ने अब तक लिखित में ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया है कि फसलों की सरकारी खरीद जारी रहेगी। अब तक जो भी बातें हो रही हैं, वे जुबानी ही हैं। यही एक प्रमुख वजह है कि नए कृषि कानून के बाद किसानों की चिंता बढ़ने की?। खास बात यह है कि सरकारी खरीद जारी रहेगी, इसका आदेश कृषि मंत्रालय से नहीं बल्कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की तरफ से आना है।

दूसरी वजह है ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास निधि राज्य सरकारों को न देना। केंद्र सरकार तीन फीसद की ये निधि हर साल राज्य सरकारों को देती थी। लेकिन इस साल केंद्र सरकार ने ये निधि देने से मना कर दिया है?। इसका इस्तेमाल ग्रामीण बुनियादी ढांचा (जिसमें कृषि सुविधाएं भी शामिल हैं) बनाने के लिए किया जाता था। नए कृषि कानून बनने के बाद ये दो महत्त्वपूर्ण बदलाव किसानों को सामने दिख रहे हैं।

अगर एमएसपी पर खरीद का प्रावधान सरकार कानून में जोड़ भी दे तो आखिर कानून का पालन किया कैसे जाएगा? एमएसपी हमेशा एक ‘फेयर एवरेज क्वॉलिटी’ के लिए होता है। यानी फसल की निश्चित की गई गुणवत्ता होगी तो ही उसके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा?। अब कोई फसल गुणवत्ता के मानकों पर ठीक बैठती है या नहीं, इसे तय कैसे किया जाएगा? जो फसल उन मानकों पर खरी नहीं उतरेगी उसका क्या होगा? ऐसी सूरत में सरकार कानून में किसानों की मांग को शामिल कर भी ले तो कानून को अमल में लाना मुश्किल होगा।

देश में लगभग पिच्यासी फीसद छोटे किसान हैं, जिनके पास खेती के लिए पांच एकड़ से कम जोत भूमि है। एमएसपी से नीचे खरीद को अपराध घोषित करने पर भी विवाद खत्म नहीं होता दिख रहा है। क्योंकि एक तरफ किसान तीनों कानूनों को वापस लेने पर अडिग हैं तो दूसरी तरफ सरकार भी कानून वापस लेने पर राजी होती नहीं दिख रही है।

इसके हल के लिए सरकार किसानों को सीधे वित्तीय सहायता दे सकती है जैसा किसान सम्मान निधि के जरिए किया जा रहा है। दूसरी तरफ किसान भी दूसरी फसलें उगाएं, जिनकी बाजार में मांग है। अभी केवल गेंहू और धान उगाने पर किसान ज्यादा जोर देते हैं और दलहन और तिलहन (आॅयल सीड) पर किसान कम ध्यान देते हैं। इससे बाजार की गतिशीलता बनी रहेगी।
’विपिन डागर, मेरठ<br />
बिगड़े बोल का बंगाल

पश्चिम बंगाल में जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे है, वैसे-वैसे नेताओं की भाषा भी सीमाएं तोड़ने रही है’ ममता दीदी की पार्टी के एक नेता मदन मित्रा ने भाजपा वालों को यहां तक कह दिया कि बंगाल मांगोगे तो चीर देंगे’ इसी तरह के बोल भाजपा के छोटे-बड़े नेताओं के भी सुनने को मिले।

दीदी का भतीजा भी बोलने में पीछे नहीं है’ बंगाल में ममता दीदी मतदाताओ को हिंदी बोल कर लुभा रही है तो भाजपा वाले बंगाली बोल रहे हैं’ जो बंगाल सबस ज्यादा सुसंस्कृत माना जाता रहा है, जहां देश की बड़ी-बड़ी हस्तियों ने जन्म लिया है, उस बंगाल की अब यह हालत देख कर शर्म से सिर झुक जा रहा है।
’स्वप्निल शर्मा, मनावर, धार