कोरोना काल के चलते जनता पहले ही परेशान है और ऊपर से बढ़ रही महंगाई कोढ़ में खाज का काम कर रही है। मूल्यों में हो रही लगातार वृद्धि ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। महंगाई के मोर्चे पर सरकार लगातार विफल हो रही है। हर दिन पेट्रोल, डीजल और आए दिन गैस के दाम बढ़ रहे हैं। उपभोक्ता वस्तुओं जैसे खाद्य तेल, दूध, अंडा आदि के दाम आसमान छू रहे हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार महंगाई दर तेरह फीसद हो गई है। यह तब है जब कोरोना महामारी चल रही है, लोगों के रोजगार बंद पड़े हैं और कमाई कम हो गई है या रुक गई है।

महंगाई बढ़ने का प्रमुख कारण पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से परिवहन लागत का बढ़ना है। अगर महंगाई पर काबू पाना है तो सरकार को पेट्रोल-डीजल की कीमतें नियंत्रित रखनी होगी। इसके अलावा, ई-वाहन की ओर बढ़ना होगा जो पर्यावरण हितैषी और मानव स्वास्थ्य के लिए भी हितकारी हैं। सरकार ने तेल के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए पेट्रोल में बीस फीसद एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य रखा है और ई-वाहन नीति भी लाई है।लेकिन महंगाई पर काबू करने के लिए ये कदम पर्याप्त नहीं हैं। अगर महंगाई पर काबू पाना है तो सरकार को इसका स्थायी समाधान खोजना होगा। इसके लिए ठोस और सकारात्मक उपायों पर विचार करना होगा। कोरोना की इस माहमारी के बीच अगर महंगाई पर नियंत्रण नहीं किया गया तो स्थितियां भयावह हो सकती हैं। बीमारी के बजाय लोग भूख से मरने लगें तो यह किसी भी देश और समाज के लिए कोई अच्छी स्थिति नहीं है।
’शरद कुमार बरनी, बुलंदशहर, उप्र

समान स्रोत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के मुताबिक सभी भारतीयों का डीएनए समान है। वे किसी भी धर्म या पंथ के हो सकते हैं। उनके अनुसार भीड़ हत्या या मॉब लिंचिंग स्वीकार्य नहीं है। यह व्याख्या हिंदू और मुसलमान में आपसी संबंध बनाने के लिए एक बहुत अच्छा संकेत है। ऐसी व्याख्या समय की जरूरत है और लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाने के लिए सहायक है। कई मुसलमानों ने इसकी सराहना की है। लेकिन विरोधी दलों ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि अगर ऐसा है, तो पाकिस्तान और बांग्लादेश को भारत का हिस्सा होना चाहिए। सही है कि विपक्ष को किसी भी बयान का विरोध करने का अधिकार है, मगर बयान राष्ट्र के पक्ष में है तो उसकी सराहना की जानी चाहिए। स्वस्थ संवाद जरूरी है।
’नरेंद्र कुमार शर्मा, जोगिंदर नगर, हिप्र

सेहत का सवाल

भारतीय समाज में माहवारी आज भी एक वर्जित विषय है। इस विषय पर गांव के अनपढ़ से लेकर शहर के तमाम पढ़े-लिखे लोग चर्चा करने से घबराते हैं। कहने को सरकार किशोर-किशोरी स्वास्थ्य को लेकर राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, किशोरी बालिका योजना आदि कई कार्यक्रम चलाती है, पर ये सभी कार्यक्रम एनीमिया की जांच और पेट के कीड़े की दवा बांटने तक सीमित रह गए हैं। कुछ जगहों पर पंचायत उद्योग सरीखे जगह से अवांछित प्रकार का सैनेटरी पैड भी बनवा कर कार्यक्रम की इतिश्री होती है। कुछ राज्यों में स्कूल जाने वाले किशोर-किशोरी के लिए पाठ्यक्रम मेँ स्वास्थ्य संबंधी विषय जोड़े गए हैं, पर वे भी व्यावहारिकता से कोसों दूर हैं और माहवारी पर इसमें भी चर्चा नहीं है। जबकि किशोरियों के लिए माहवारी जहां भयानक स्वप्न है, वही किशोरों के लिए जुगुप्सा। बदलाव के इस दौर में जरूरी हो गया है कि किशोरावस्था में मन में माहवारी को लेकर उपजे प्रश्नों पर सही तरीके से चर्चा की जाए और यौन मामलों और माहवारी के बीच की रेखा को बरकरार रखते हुए इस वर्जना से बाहर निकला जाए और इसे स्वास्थ्य का मामला माना जाए।
’लिली सिंह, लखनऊ, उप्र