भारत में ओमीक्रान का संक्रमण जैसे बढ़ रहा है, उससे तीसरी लहर का डर सताने लगा है। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक कोरोना का नया बहुरूप ओमीक्रान अब तक भारत में डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है। बदलते स्वरूप में कोरोना का बार-बार आना बड़ा चिंताजनक विषय बना हुआ है। अब सवाल है कि कब तक कोरोना का सफाया होगा? फिलहाल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लोगों को सतर्क रहने और बेवजह यात्रा न करने का सुझाव दिया है। जरूरत है कि लोग कोरोना नियमों का पालन करें और अपनी तथा अपनों कि सुरक्षा करें। समाधान यही है।
’निखिल रस्तोगी, कुरुक्षेत्र विवि

प्रभाव दुष्प्रभाव

कहते हैं विकास के साथ विनाश भी जुड़ा हुआ है। यह बात सोलह आने सही प्रतीत होती है। हर निर्माण का कुछ न कुछ विपरीत प्रभाव होता ही है। आवागमन के आधुनिक साधनों और कल-कारखानों के निर्माण से वायुमंडल प्रदूषित हुआ और नदियों के जल में हानिकारक रसायनों का जहर घुला। सड़कें तथा ऊंची इमारतों के निर्माण से कृषि योग्य भूमि कम हुई तथा पेड़ों की निर्ममतापूर्वक बलि दी गई। पक्की सड़कों से पानी का जमीन में अवशोषण ही रुक गया। इंसान को तंदुरुस्त रखने के लिए एलोपैथिक दवाओं का सर्वाधिक प्रयोग हमारे देश में होता है।

इन दवाइयों के दुष्प्रभाव किसी से छिपे नहीं हैं। बड़े बांधों के निर्माण से भूगर्भीय हलचले बढ़ीं और भूकंप जैसी आपदाओं का विस्तार हुआ। आधुनिक संचार के साधनों द्वारा मनुष्य एक ओर जहां तरक्की के नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है और दुनिया सिमट कर छोटी होती जा रही है वहीं दूसरी ओर इलेक्ट्रानिक और इ-कचरे से रेडिएशन फैलने की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है।
’ललित महालकरी, इंदौर</p>

विवाह की उम्र

देश में अभी तक विवाह के लिए लड़कियों की उम्र अठारह और लड़कों की इक्कीस वर्ष कानूनी रूप से निर्धारित थी। अब सरकार ने लड़कियों के लिए भी विवाह की उम्र इक्कीस वर्ष कर दी है। यह एक बेहतर फैसला है। देश में पहले बाल विवाह का चलन अधिक था, अब इस कानून के बन जाने से यह प्रवृत्ति रुकेगी। पहले जहां लड़कियां घर से बाहर निकलने, स्कूल जाने, समाज में स्वाभिमान से अपनी बात रखने तथा अपना अधिकार मांगने में हिचकती थीं, वही आज के परिवेश में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं रह गया है जहां लड़कियों का प्रदर्शन उत्कृष्ट न हो। ऐसे में यह कानून लड़कियों को समाज की कुरीतियों से लड़ने में मदद करेगा।

लड़कियों की शादी की उम्र इक्कीस वर्ष करने से न सिर्फ उनकी साक्षरता दर बढ़ेगी, बल्कि लड़कियां उम्र के साथ-साथ परिपक्व होंगी तभी वे एक स्वस्थ संतान को जन्म देने में सक्षम होंगी। इसलिए सरकार का यह फैसला एक उचित कदम है। इससे न सिर्फ लड़कियों का बल्कि देश, समाज और शिक्षा के क्षेत्र में भी भला होगा।
’श्याम मिश्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय