किसानों ने अब कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले सात महीने से ज्यादा से चल रहे अपने आंदोलन को और तेज कर दिया है। ताजा खबर के मुताबिक वे अब संसद के मानसून सत्र के दौरान संसद के बाहर प्रदर्शन करेंगे। जाहिर है, इन प्रदर्शनों से किसान अब देश का ध्यान फिर से आंदोलन की ओर लाना चाहते हैं। लेकिन सवाल यह है कि किसान आंदोलन कब तक चलेगा। यह चिंता की बात है। इस आंदोलन को सात महीनों से अधिक समय हो चुका है। अभी तक सरकार या किसानों की ओर से कोई ठोस पहल या सकारात्मक परिणाम नहीं देखा गया है। हालांकि सरकार का दावा है कि कृषि कानून पूरी तरह से किसानों के हित में है, मगर किसान सरकार पर भरोसा नहीं कर रहे हैं। इस समस्या का समाधान यह है कि सरकार को कृषि कानूनों को निरस्त करके एमएसपी की प्रणाली की स्थापना की घोषणा करे, ताकि किसानों को सरकार पर भरोसा कायम हो सके। किसानों का आंदोलन जितना लंबा चलेगा, सरकार के लिए उतनी ही मुश्किलें खड़ी होंगी।
’साजिद महमूद शेख, ठाणे, महाराष्ट्र
किसका विपक्ष
जिसने भी राजनीतिक पार्टी को निजी संपत्ति समझा, समझने के लिए अवसर दिया या दोषों को बताने के बजाय चाटुकारिता की है, उन पार्टियों के टुकड़े हुए या असंतुष्ट लोग दूसरे दल में चले गए और जा भी रहे हैं। न कुछ बन पड़ा तो खुद ही दल का गठन कर लिया और क्षेत्रीय या प्रादेशिक दल तक सिमट गए। स्थिति यह है कि गुटबाजी में कांग्रेस मध्य प्रदेश की सत्ता से हाथ धोया तो अन्य प्रदेश में भी जारी खटपट से नैया के खिवैया चिंतित हैं। जरूरत है न केवल नैया के नवीनीकरण की, बल्कि खिवैया की भी, जो पार्टी को अपनी संपत्ति मानने वालों से मुकाबला करने में दक्ष भी हो। बिखरे विपक्ष से उब चुकी जनता की मांग है विपक्ष भी लीक से हटे और लोकतांत्रिक रूप में सशक्त बने।
’बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, उज्जैन, मप्र