किसी भी समाज और देश में शासन का सुचारू रूप से संचालन करने के लिए जरूरी है कि वहां की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही बेहतर एवं आधुनिक हो। हमें ज्ञात है कि देश की आंतरिक व्यवस्था सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस बल पर होती है। यह समाज में शांति बनाए रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए अगर हम सच में एक आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना चाहते हैं या फिर भारत को विश्व पटल पर ऐसे राष्ट्र के रूप में स्थापित करना चाहते हैं जो अपनी लोक व्यवस्था के लिए जाना जाता है तो इसके लिए जरूरी है कि हमारी पुलिस की कार्यप्रणाली में एवं पुलिस व्यवस्था में सुधार हो।

यह किसी से छिपा नहीं है कि आज भी भारत में पुलिस का नाम सुनते ही आमजन में डर-भय, रिश्वतखोरी, असभ्य भाषाई, निरंकुशता आदि वाले व्यक्ति की छवि उभर कर आती है। हम आज भी आमजन में यह भरोसा नहीं जगा पाए कि यह पुलिस आपकी सुविधा एवं सेवा के लिए ही स्थापित की गई है। वर्तमान में हमने भले ही कई क्षेत्रों में तरक्की कर ली हो, लेकिन पुलिसिया तंत्र में आज भी कई चुनौतियां मौजूद हैं। देश के पुलिस थानों की हालत देखेंगे तो पाएंगे कि वहां बुनियादी सुविधा ही बेहतर नहीं है।

इसके अलावा, न्यायपालिका में भी सुधार नहीं होने के कारण पुलिस को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि किस कदर पुलिस तंत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप जरूरत से ज्यादा रहता है और यही कारण है कि ईमानदार पुलिस कर्मियों की कार्यप्रणाली को बार-बार प्रभावित किया जाता है। इसके चलते पुलिसकर्मियों को मानसिक तनाव तो होता ही है, इनका मनोबल भी टूट जाता है। यों अतीत में इसके लिए समय-समय पर समितियों और आयोगों का गठन होता रहा है। लेकिन इससे आगे के काम अधूरे पड़े हैं।

अब समय की मांग है कि अगर हमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक प्रगति करना है तो पुलिस व्यवस्था में कुछ सुधार करने होंगे। इसके लिए पहला उपाय यह है कि पुलिस को राजनीतिक नियंत्रण के साथ-साथ नौकरशाही से भी दूर रखा जाए, क्योंकि आज जो पुलिस की दुर्दशा है, इसके पीछे कहीं न कहीं बढ़ता राजनीतिक और नौकरशाही का हस्तक्षेप ही है।

दूसरा उपाय है इस व्यवस्था में आधुनिकीकरण को अपनाना। फिर बात तकनीकी स्तर की हो या फिर प्रशिक्षण स्तर की। इसके अलावा, रिक्त पड़े पदों पर भर्ती नहीं करना इस व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी है। इसका परिणाम यह होता है कि ड्यूटी पर तैनात पुलिस वालों पर मानसिक तनाव बढ़ता है, अवसाद जैसी प्रवृतियां भी जन्म लेती हैं और साथ ही घरेलू हिंसा भी बढ़ती है और फिर वे भ्रष्टाचार के लिए प्रेरित होते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि पुलिस वाले भी सामाजिक प्राणी होते हैं।
सौरव बुंदेला, भोपाल, मप्र

सद्भाव का त्योहार

पूरे भारत में होली को त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जहां लोग एक दूसरे के भाईचारा के साथ आपस में मिलजुल कर होली को रंगोत्सव के रूप में मनाते हैं। फाल्गुन के इस मास में हर तरफ प्रकृति में नए-नए बदलाव होते हैं। खेतों में फसल हो या पेड़-पौधे, सबका अपना एक रंग होता है, जो समूची प्रकृति को अपने रंग से भर देता है। वही होली के साथ पर्यावरण और प्रकृति को भी ध्यान में रखा जाए।

होली में लोगों में फाल्गुनी गीतों का संचार हो, नृत्य का भाव हो, रंग के इस उत्सव में हम सभी को पर्यावरण को भी सुरक्षित करना है। बाजार के रसायनों से युक्त रंग होली को कहीं फीका न कर दे, इसलिए ध्यानपूर्वक हम सब को प्रकृति के साथ होली खेलना चाहिए और भारत में भाईचारे का संदेश देना चाहिए।
सचिन पांडेय, प्रयागराज