बायोगैस के प्रोत्साहन के लिए भारत में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और विभिन्न स्थानों पर अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में बायोगैस का प्रयोग भी अत्यंत सुखद परिणामदायी साबित हुआ है। इससे एक तरफ रसोई के लिए स्वच्छ र्इंधन मिल रहा है तो दूसरी तरफ रोशनी से घरों का अंधकार भी छंट रहा है। अत्यंत रोचक बात यह है कि इसमें ‘पावर ग्रिड’ पर अतिभारिता में कमी आने की अपार संभावनाएं नजर आ रही हैं।

बायोगैस के लिए आमतौर पर पशुओं के मल का इस्तेमाल किया जाता रहा, पर अब बायोगैस संयंत्र को घर के शौचालयों से जोड़कर मानव मल का सदुपयोग करने का फैसला वैज्ञानिक और सराहनीय है। अगर किसान पराली को खेतों में जलाकर पर्यावरण प्रदूषण के बजाय इसका उपयोग बायोगैस संयंत्र के लिए कच्चे माल के रूप में करें, तो पराली जलाने की समस्या से निजात तो मिलेगी ही, यह पशुमल व मानव मल की तरह स्वच्छता अभियान में भी सहायक सिद्ध होगी और पर्यावरण मित्र की भूमिका भी अदा करेगी।

बायोगैस संयंत्र की स्थापना, रखरखाव, मरम्मत आदि के माध्यम से किसानों को रोजगार सृजन का अवसर भी मिलेगा और बायोगैस के संयंत्र से उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होने वाली ‘स्लरी’ फसल उत्पादन के लिए एक बेहतरीन जैव उर्वरक का काम करेगी।
’नाटू यादव, दिल्ली विवि, दिल्ली

तकनीक की मार

तकनीकी उन्नति ने मानव जीवन की राह आसान की है। इससे समय के साथ धन की भी बचत हुई है, मगर जिस तरह इसका दुरुपयोग होता है, वह कतई उचित नहीं है। मोबाइल को ही ले लीजिए। लोग काम-धंधे छोड़ कर दिनभर मोबाइल में ही व्यस्त रहते हैं, जबकि इसका अति उपयोग सेहत के अनुकूल नहीं है। इससे कई बीमारियों के खतरे पैदा हो रहे हैं। आंखों की रोशनी के लिए तो यह कतई उपयुक्त नहीं है।

आज सभी दिन भर इसमें सिर खपाते नजर आते हैं। दिलोदिमाग मोबाइल में लगा होने के कारण लोगों की कार्यक्षमता भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। अब आगे 5-जी शुरू होने के बाद हालात क्या होंगे, सोच कर गंभीर चिंता पैदा होती है। बगैर मोबाइल के आदमी जितना सुखी और निश्ंिचत था, आज वह उतना ही परेशान, चिंतित और अवसाद में है। स्वस्थ और सुरक्षित जीवन के लिए मोबाइल का सीमित उपयोग ही फायदेमंद है।
’अमृतलाल मारू ‘रवि’, धार, मप्र